धर्म ध्वजा फहराते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
प्रस्तुत है ज्ञान -उद्भिद् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण
*738 वां* सार -संक्षेप
1: उद्भिद् =झरना
स्थान :तीर्थस्थान चित्रकूट
( सेवा समर्पण संयम स्वाध्याय के विग्रह श्रद्धेय नाना जी की कर्मस्थली )
इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य स्पष्ट है
उद्देश्य है कि हम परमात्मा की लीला के पात्र सद्पुरुष भारतवर्ष की सेवा में संलग्न हों अस्ताचल देशों द्वारा फैलाए गए भ्रम के जाल से बाहर निकलें अपने सद्ग्रंथों से सुपरिचित हों सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर संकटों का सामना करने का हौसला प्राप्त करें प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें तीर्थस्थानों की यात्रा करते समय आस्थामय जिज्ञासु मानस रखें
संसारेतर चिन्तन करते हुए सांसारिकता से नाता रखें
भ्रमित Society आपके प्रति क्या धारणा बना ले इसकी चिन्ता न कर अपने विचार व्यक्त करें अनृजु कालनेमियों को पहचानकर उनसे सतर्क रहें
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को जानें
आर्ष परम्परा की गहराई में उतरने का प्रयास करें भारतीय संस्कृति के चिन्तन में रत हों भारतवर्ष की जीवनपद्धति ही विश्व का कल्याण करने में सक्षम है यह स्वयं समझते हुए इसको समझाने का प्रयास करें
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा का आधार लेकर अपनी संस्था युगभारती का विस्तार करें
हमारे अन्दर परिवार समाज राष्ट्र की सेवा के विचार अंकुरित हों हम अपना प्रकाश फैलाते रहें
निःसंदेह इन सदाचार वेलाओं की यह पद्धति यह रूप हमें भा रहा है
विषम परिस्थितियां आ जाएं तो भी हम अपना उद्देश्य न भूलें राष्ट्रसेवापारायण बनें सुविधाओं पर ही पूर्ण आश्रित न हों अभावों में भी अपने लक्ष्य पर दृष्टि बनाए रखें
भगवान् राम विकट विषम परिस्थितियों में भी अपना उद्देश्य नहीं भूले
*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।*
*सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥*
आर्ष कथन है कि राम का नाम जपने से आत्मिक तथा मानसिक विश्वास बढ़ता है।
राम नाम के अमृत का अमृतपान करने से मनुष्यों को प्रारब्धजन्य कष्ट भी कट जाते हैं।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, ब्रह्म स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं मां सीता के पति की मैं वंदना करता हूं ।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण प्रदान करें
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन द्वारा प्रभु राम के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी से और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् राम के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की ही शरण लेता हूँ।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट यात्रा के विषय में क्या बताया नुंह की घटना पर हमारी प्रतिक्रिया क्या हो आदि जानने के लिए सुनें