8.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 740 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -स्रुति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  740 वां सार -संक्षेप


 1: स्रुतिः =धारा


स्थान :सरौंहां



इतनी अद्भुत सृष्टि का कोई रचनाकार न हो यह कैसे हो सकता है  परमात्मा का अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता हम विश्वास करते हैं कि परमात्मा का अस्तित्व है

परमात्मा का मूल उद्देश्य अपने अस्तित्व की परीक्षा देना नहीं है वह तो यह चाहता है कि हम उसके संपूर्ण स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर आनन्द की अनुभूति करें


 परमात्मा विविध रूपों में प्रकट होता है


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध ² सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


² कहीं कहीं मनुज



हम आस्था विश्वास श्रद्धा भक्ति के भाव लेकर सहज अभिव्यक्ति के साथ आत्मानुभूति करें हम वही विविध रूप धारण कर आये हैं षड्विकारों से रहित हों यह भाव रखें  अपनी आवश्यकताओं के प्रति व्याकुल न हों व्याकुल होने की क्षुद्रता से मुक्त रहें संयम स्वाध्याय साधना का आश्रय लें


न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,


मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।


न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,


चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥


इस अनुभूति के साथ  आइये 

इस सदाचार वेला का लाभ उठाएं और चिन्तन करें और गहराई में जाकर चिन्तन करने पर हम देखते हैं कि 

भगवान् को कैसा भक्त प्रिय है


अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।


सभी प्राणियों में द्वेष की भावना से दूर होकर , सबका मित्र ,दयालु, ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख और दुःख दोनों की प्राप्ति में समान भाव रखने वाला,क्षमाशील, पौरुष और पराक्रम पर आधारित होकर सदैव सन्तुष्ट,योगी, शरीर को वश में किये हुए, दृढ़ निश्चय वाला, मुझ में अर्पित मन बुद्धि वाला जो मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है।


यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।


हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।12.15।।

जो किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता बात सही है लेकिन किसी से कष्ट पाएं भी नहीं इसीलिए इस कलियुग में संगठनावतार का महत्त्व है

किसी भी शत्रु में इतनी हिम्मत न हो कि वह हमें भयभीत करने के बारे में भी सोच सके हमें संपूर्ण भारतभूमि की रक्षा करनी है


यह एकलिंग का आसन है¸

इस पर न किसी का शासन है।

नित सिहक रहा कमलासन है¸

यह सिंहासन सिंहासन है॥1॥


राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है॥3॥


इस सिंहासन पर सहज रूप से विराजमान रहना हमारी स्वाभाविक अवस्था है कालनेमियों से सावधान रहें

छोटे से छोटे कार्य की जिम्मेदारी मिली है तो उसे पूर्ण करें 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

राक्षसों से सावधानी आवश्यक है पुरुषार्थी पुरुष 

इन समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होता है समाज -निर्माण का कार्य करें

लोगों को स्वावलम्बी बनाएं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि , कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तीन माह के लिए कौन सा कार्य किया था  तथाकथित संतों को किसने एकत्र किया था  आदि जानने के लिए सुनें