हे ! आदिस्वरा कल्याणी संस्कृत नमो नमो,
हे! देवों की शुभ वाणी संस्कृत नमो नमो,
हे ! आदिकाव्य की भाषा संस्कृत नमो नमो,
हे ! संस्कृति की परिभाषा संस्कृत नमो नमो,
हे ! तत्वशक्ति का अर्पण संस्कृत नमो नमो,
मानवमूल्यों का दर्पण संस्कृत नमो नमो ,
हे! वैदिक ऋचा -मंत्र -उच्चारण नमो नमो,
हे! सृष्टि सर्जना का शिव कारण नमो नमो।
कल विश्व संस्कृत दिवस था
आइये हम कृतसंकल्प हों कि विश्व की प्राचीनतम भाषा सभी भाषाओं की जननि देवों की शुभवाणी अपनी भारतीय संस्कृति की परिभाषा मानवमूल्यों का दर्पण मनुष्यत्व को जानने अपनाने की कुंजी संस्कृत भाषा को अवश्य सीखेंगे और इसका प्रयास आज से ही प्रारम्भ कर देंगे
प्रस्तुत है शुक्रशिष्य -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*764 वां* सार -संक्षेप
1: शुक्रशिष्यः =राक्षस
संसार अत्यन्त रहस्यात्मक और अद्भुत है यह अनौपचारिक रूप से प्रारम्भ होकर औपचारिक रूप ले लेता है स्रष्टा के मन में इच्छा अर्थात् विकार उत्पन्न हुआ वह अनौपचारिक था और फिर उसके मुख से ॐ का स्वर उद्भूत हुआ
यह उसके मुख से निकलने वाला पहला शब्द था और फिर सृष्टि की रचना हो गई
अनौपचारिकता से औपचारिकता की यात्रा प्रारम्भ हो गई
परमात्मा अनौपचारिक से औपचारिक हो जाता है और स्वयं अवतार लेता है वह संसार की सांसारिकता से घिर जाता है और फिर मुक्त हो जाता है
उस अवतारी स्वरूप को जो सम्बन्ध मान लेते हैं वे दुःखी होते हैं
हम अनौपचारिकता से औपचारिकता की यात्रा करते हुए फिर से अनौपचारिक बनने का प्रयास करते हैं लेकिन सांसारिकता के आवरण में इतना लिपट जाते हैं कि अनौपचारिक बन नहीं पाते बहुत से प्रपंचों से हमारा सामना होता है हम भूल जाते हैं कि हम कौन हैं
हम संसार के भंवरजाल में फंस चुके होते हैं
बस यहीं पर अध्यात्म का महत्त्व समझ में आता है नहीं आता है तो आना चाहिए
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥4॥
अध्यात्म का वह स्वरूप अपनाएं जो शौर्य को महिमामंडित करे शक्ति का गायन करे
भारतवर्ष की जीवन पद्धति और विचार अत्यन्त अद्भुत है
हम ध्यान धारणा का अभ्यास करें शवासन महत्त्वपूर्ण है अध्ययन स्वाध्याय लेखन चिन्तन सद्संगति का अभ्यास लाभकारी है
उचित खानपान आवश्यक है
कुछ समय अपने लिए अवश्य निकालें कुछ अधिक समय अपनों के लिए और उससे भी अधिक समय परमात्मा के लिए निकालें
अपने लिए निकले समय में हमारे परमात्मा से संयुत होने पर अद्भुत परिणाम सामने आते हैं यही आत्मविस्तार है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी कल और परसों उन्नाव विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों के लिए हम सबको आमन्त्रित कर रहे हैं
और भैया आशुतोष द्विवेदी जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें