10.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *773 वां*

 तैत्तिरीय उपनिषद् के साथ

कौषितकीब्राह्मणोपनिषद् तथा मुद्गलोपनिषद् में भी सम्मिलित एक प्रार्थना है:


ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।


ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।



इसमें एक शब्द आया है वायु

वायु प्राण को संचरित करती है इसके विकृत होने पर तरह तरह के उपद्रव होते हैं एक वैद्य कहते थे वायु अस्सी प्रकार से विकृत होती है इसलिए वायु को सम रखने के उपाय किए जाते हैं वायु को प्रत्यक्ष ब्रह्म माना गया है 


ऐसे अद्भुत हैं उपनिषद्

 जो ज्ञान के अद्भुत स्रोत हैं



मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।


हमारे सनातन धर्म में जो कुछ है इतना तात्विक है शक्तिप्रद है कि उसमें हम रम जाएं तो स्वाभाविक रूप से हमारी शक्तियां जाग्रत हो जाएंगी

यही अध्यात्म है इससे विमुखता ही हमें कष्ट देती है 

इसी के प्रति हमारे मन में अनास्था आये इसके अनेक प्रयास होते रहे

अब समय है हम सचेत जाग्रत रहें तो 


प्रस्तुत है  मनोजिघ्र ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष एकादशी /द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 10  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *773 वां* सार -संक्षेप


 1:  दूसरे व्यक्तियों के मन के विचार भांपने वाला



दूसरों के हृदयों पर राज करने में सक्षम हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के जीवन को उन्नत बनाने के लिए आचार्य जी पुनः आज सदाचार वेला में उपस्थित हैं

परमात्मा द्वारा प्रदत्त एक उपहार अर्थात् सदाचार हमारी भारतीय संस्कृति के स्वरूप को परिलक्षित करता है आइये समय का सदुपयोग करते हुए  उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें 

हम शरीर और मन शुद्ध कर भाव विश्वास भक्ति शक्ति संयम को अपने भीतर प्रवेश कराने का प्रयास करें 


दिनांक 1 अक्टूबर 1847 को लंदन में जन्मी एनी बेसेंट पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचारों का अत्यन्त गहरा प्रभाव था।

सन् 1878 में उन्होंने पहली बार भारत राष्ट्र के बारे में अपने विचार रखे । उनके राष्ट्र भावना से ओतप्रोत विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति अत्यन्त गहरा स्नेह उत्पन्न कर दिया।

उन्हीं के भाषण का एक अंश है


“हिंदू धर्म भारत की आत्मा है। हिंदुत्व के बिना भारत नहीं हो सकता. हिंदुत्व के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है. हिंदू धर्म वह मिट्टी है जिसमें भारत की जड़ें जमी हुई हैं और वह अपने स्थान से उखड़े हुए पेड़ की तरह अनिवार्य रूप से सूख जाएगा। भारत में कई जातियाँ फल-फूल रही हैं, लेकिन उनमें से कोई भी उसके अतीत की सुदूर सुबह तक नहीं जाती है, और न ही वे एक राष्ट्र के रूप में उसके धीरज के लिए आवश्यक हैं। हो सकता है कि हर कोई आते ही ख़त्म हो जाए और फिर भी बना रहे।..... अतीत की भौगोलिक अभिव्यक्ति, नष्ट हो चुके गौरव की धुंधली स्मृति, उनका साहित्य, उनकी कला, उनके स्मारक सभी पर हिंदू धर्म लिखा हुआ है। और अगर हिंदू हिंदू धर्म को कायम नहीं रखेंगे, तो इसे कौन बचाएगा? *यदि भारत के अपने बच्चे ही उसके विश्वास पर कायम नहीं रहेंगे, तो इसकी रक्षा कौन करेगा?* हिन्दू ही भारत को बचा सकते हैं, और भारत और हिंदू धर्म एक हैं”।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अटल जी की कौन सी कविता का उल्लेख किया G-20 का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें