प्रभा प्रकाश दे रही निशा तमस् उगल रही,
अपार पार जो गए कहीं कभी विकल नहीं,
यही दशा दिशा निशा-प्रकाश का रहस्य है,
सखे, सदा समझ रखो, ये सिर्फ नर के वस्य है।
प्रस्तुत है मनोजव ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 9 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*772 वां* सार -संक्षेप
1: मन के समान वेगवान्
तमाम आपाधापी के बीच समय व्यतीत होता रहता है ऐसे बहुत से प्रसंग प्रपंच आते हैं जो हमें हताशा में डुबो देते हैं इसलिए हमें नित्य जीवित जाग्रत उत्साहित होने के लिए इन सदाचार संप्रेषणों का आश्रय लेना ही चाहिए हमें मनुष्यत्व की अनुभूति हो रामत्व का बोध हो संसार के सत्य असत्य का बोध हो अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए यह भाव ला सकें कि मैं संसार नहीं सार हूं इसके लिए ज्ञानी चिन्तक विचारक कर्मशील योद्धा आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हमारा उद्देश्य है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
राष्ट्रजागरण का महान् कार्य जाग्रत अन्तःकरण वाले हम लोगों का है समाज और राष्ट्र के लिए जीना आनन्ददायक है
हम अद्भुत धर्मक्षेत्र में रहते हैं
हमारे यहां जैसा ज्ञान, ज्ञान के विभेद, अध्यात्म की एकात्मता, संसार के सत्य, संसारेतर जीवन आदि पर गहन चिन्तन मनन विचारण हुआ है वैसा अन्यत्र नहीं हुआ है यह परमात्मा की अद्भुत व्यवस्था है हम परमात्मा पर विश्वास करते हैं सृष्टि परमात्मा ने ही बनाई है सृष्टि का निर्माण अनायास ही नहीं हो गया है इस विश्वास के कारण ही हम सनातन चिन्तन वाले कहे जाते हैं
हम चिरन्तन हैं हम परमात्मा का अंश हैं हम उसका वरदान हैं हम स्वयं ही परमात्मा हैं
सनातन सत्य इस संसार का शाश्वत विचिंतन है,
कला कविता कथा इतिहास दर्शन धर्म-ग्रंथन है,
सनातन की महत्ता और सत्ता को न समझे जो,
बेचारा बुद्धि से अतिक्षीण व्याकुल है अकिंचन है।
हमें व्याकुलों और अकिंचनों को उनका ठीक स्थान बताते रहना है इस रामत्व को हमें अनुभव करते रहना है
जो सनातन सत्य है वही सनातन धर्म है यह शुष्क चिन्तन नहीं है मूर्खों को यह समझ में नहीं आ सकता है
सनातन धर्म को नष्ट करने वाले दूषित चिन्तन को अपने अमृत के प्रभाव से हम शमित करें
आचार्य जी ने अपनी रचित पुस्तक अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं से हमें संबल प्रदान करती एक कविता सुनाई
बीत गया दिन शाम हुई आराम करो
फिर से सूरज की किरणों का ध्यान करो
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रामास्वामी की चर्चा क्यों की अटल जी को भीड़ क्यों पसंद थी भैया अमित गुप्त जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें