12.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *775 वां*

 हम क्या कर लेंगे

हम कर लेंगे 

आत्मशक्ति की आहुति बनकर 

समय परिस्थिति भांप परखकर

 दिशा दृष्टि रख

भावी की भविष्य रचना इतिहास बाँचकर

  और संगठन को युग का अवतार मानकर

भाग्य रचेंगे

यह कर लेंगे यह कर लेंगे यह कर लेंगे




प्रस्तुत है निरन्तर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 12  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *775 वां* सार -संक्षेप


 1:  सदा आंखों के सामने रहने वाला




भाव विचार चिन्तन मनन ध्यान दर्शन अध्ययन स्वाध्याय को प्रचुर मात्रा में संचित करने का जिससे हम सांसारिक प्रपंचों में इसे अधिक से अधिक व्यय कर सकें जिससे उन प्रपंचों में न उलझ सकें क्योंकि उनमें उलझने से हम दुःखी होते हैं हमारा शरीर भी कष्ट पाता है  तो सबसे सुगम मार्ग है यह नित्य की सदाचार वेला

और इसकी निरन्तरता का कारण है भगवान हनुमान जी का आदेश मां सरस्वती की कृपा आचार्य जी का समर्पण और हमारा सद् -आग्रह के लिए सदा आग्रही होना

ये वेलाएं हमें अनुभूति कराती हैं कि हम अत्यन्त विलक्षण मनुष्य हैं मनुष्यत्व हमारा कर्तव्य है संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करने वाले जिस देश में  जन्मे होने का हमें सौभाग्य मिला है उस देश के प्रति निष्ठा हमारा धर्म है,

हमारा शरीर नाशवान है तो शरीर से मोह क्यों मृत्यु से भय क्यों

आइये प्रवेश करें आज की वेला में



आचार्य जी कहते हैं कि हमारे अन्दर मानवता के कल्याण का भाव होना चाहिए

ध्यानी योगी ऋषि मुनि यदि एकांत में बैठे हैं और कहते हैं हमें संसार से मतलब नहीं तो ऐसे संतत्व का क्या अर्थ रह जाता है

अध्यात्म सदैव शौर्य प्रमंडित होना चाहिए

अध्यात्म ऐसा जो रामत्व की अनुभूति कराये


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


आचार्य जी चाहते हैं कि हम शौर्यप्रमंडित अध्यात्म के महत्त्व को समझकर अस्ताचल देशों से भ्रमित न होकर  राष्ट्र के प्रति अपनी भाषा के प्रति निष्ठावान रहें

ऐसा न होते देख आचार्य जी निम्नांकित पंक्तियों में अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं 

 


क्या कर लोगे

जब चिन्तन बैरागी बन वन वन भटकेगा

कर्मठता कुण्ठित होकर दम तोड़ चलेगी

धर्म ध्वजाएं भी रूठेंगी लिप्साओं से

पछुआ की लपटों से पुरवाई झुलसेगी.....


हम आत्महीनता का त्याग करें गुलामी की भाषा का मोह त्यागें भविष्य के लिए वर्तमान का संस्कार करें 

आत्मशक्ति को परखें संगठन का महत्त्व समझें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीता के किन श्लोकों का उल्लेख किया चिन्तक विचारक किसमें मस्त होता है

संगठन में कौन सा भाव रचना बसना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें