युजे वां ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्विश्लोक एतु पथ्येव सूरेः।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥
ज्ञानियों के पदचिह्नों का अनुगमन करते हुए मैं लगातार ध्यान के द्वारा तुम दोनों का ब्रह्म में विलयन करता हूँ दिव्यधाम में निवास करने वाले अमृत के पुत्र मेरी बात सुनें
श्वेताश्वतरोपनिषद्
प्रस्तुत है अध्यात्म -मयूख ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*776वां* सार -संक्षेप
1: अध्यात्म की ज्वाला
हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के पथ को प्रशस्त बनाने के लिए आचार्य जी पुनः आज सदाचार वेला में उपस्थित हैं
समय का सदुपयोग करते हुए
आइये इस आनन्द -अर्णव में प्रवेश कर जाएं
परमात्मा की इस अद्भुत रचना में वास करने वाला मनुष्य किसी भी तरह का प्रयास करने में सक्षम है
मनुष्य के लिए संसार को विस्मृत करना कठिन काम है लेकिन इसका प्रयास तो उसे करना चाहिए
क्योंकि
बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमी
पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा
तेरी किरपा से धरती थमी
दिया तूने हमे जब जनम
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म
इस सारे संसार के अन्तर में एक आत्मसत्ता है जो अग्निस्वरूप भी है और जो जल की अतल गहराई में अवस्थित है।'उसका ज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति मृत्यु की पकड़ से दूर हो जाता है तथा इस महद्-गति के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं है
वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों एवं उपनिषदों में जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है
ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीन समय में वेदों को विस्तार से समझाने वाले पुराणों की रचना हुई
और ऐसे अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी नित्य नूतन अद्भुत पुराणों को,जो भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं, वारुणी से भ्रमित हम लोगों ने बहुत लांछित किया हमारे अन्दर बहुत से विकार आ गए
अब समय है हम इन विकारों को दूर करते जाएं
हमारे मन में इनके प्रति श्रद्धा होनी चाहिए और चार लोगों को भी बताएं
हम ऋषित्व की अनुभूति करें
आनन्द के कुछ क्षण निकालें
पुराणों में कथा से कथा संयुत होती जाती है
म द्वयं भ द्वयं चैव ब्र त्रयं व चतुष्टयम् ।
अ ना प लिं ग कू स्कानि पुराणानि प्रचक्ष्यते ।।
अर्थात्
म अक्षरे पुराणद्वयं-
मत्स्यपुराणं मार्कण्डेय पुराणम्
भ अक्षरे पुराण द्वयं- भागवत पुराणं,भविष्यपुराणञ्च ।
ब्र -अक्षरे पुराण त्रयं - ब्रह्मपुराणं,ब्रह्मवैवर्त पुराणम्,ब्रह्माण्डपुराणञ्च ।
व-अक्षरे पुराणचतुष्टयं- वायुपुराणं,वामनपुराणं,वराहपुराणं,विष्णुपुराणञ्च ।
अ -अक्षरे एकम्- अग्निपुराणम्
ना-अक्षरे एकम्- नारदीयपुराणम्
प-अक्षरे एकम्- पद्मपुराणम्
लि-अक्षरे एकम्- लिङ्गपुराणम्
ग-अक्षरे एकम्- गरुड़ पुराणम्
कू-अक्षरे एकम्- कूर्म पुराणम्
स्क- अक्षरे एकम्- स्कन्दपुराणम्
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितं चैव पुराण पंचलक्षणम् ।।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उदयनिधि का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें