मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।
प्रस्तुत है शमिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*777 वां* सार -संक्षेप
1: जिसने अपने आवेशों का दमन कर लिया है
हमारे राष्ट्र का जीवन दर्शन अद्भुत है भक्ति, जो विश्वास की पराकाष्ठा है, का आधार संपूर्ण विश्व के भरण पोषण की हमारी परिकल्पना अद्भुत है हमारा राष्ट्र अनार्य को आर्य बनाने में विश्वास रखता है और इसके लिए कृतसंकल्प भी है
हम अपने कार्य व्यवहार खानपान को परिशुद्ध करते हुए अपने बड़े उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए समाज और देश पर भक्ति की सीमा तक विश्वास करें क्योंकि विश्वासी कभी कुंठित चिन्तित भ्रमित व्यथित नहीं रह सकता वह संकटों से कभी घबराता नहीं है और उनसे बाहर भी निकल आता है जिसके मन में मरना भी वस्त्र बदलने के समान है भाव विद्यमान रहता है
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।
जो भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि को भक्ति पूर्वक अर्पित करता है, उस शुद्ध मन वाले भक्त का वह अर्पण मैं स्वीकार करता हूँ
जो संसार को जितना अधिक सत्य समझता है वह उतना ही व्यथित चिन्तित रहता है उसका परामर्शदाता उसे और अधिक भ्रमित करता है
जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।
अंधा−अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥
स्वार्थमय भक्ति में लीन व्यक्ति को तथ्य सत्य तत्त्व व्यर्थ का दिखता है वह अपने परिवेश को भी दूषित कर देता है
कल आचार्य जी ने पुराणों पर चर्चा की थी पुराण भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं वे अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी नूतन लगते हैं इनमें कथा से कथा संयुत होती चलती है
हमें इन पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए
पुराणों में अद्भुत अलंकारिकता है
विष्णु पुराण छोटे पुराण ग्रंथों में से एक है, जिसके उपलब्ध संस्करणों में लगभग 7,000 छंद हैं। यह मुख्यतः भगवान विष्णु और कृष्ण जैसे उनके अवतारों पर केंद्रित है , किन्तु यह ब्रह्मा और शिव की भी प्रशंसा करता है
विल्सन का कहना है कि पुराण सर्वेश्वरवादी है और इसमें विद्यमान विचार वैदिक मान्यताओं और विचारों पर आधारित हैं
इसी में वर्णित है
यावत् सूर्य उदेति स्म यावच्च प्रतितिष्ठति ।
तत् सर्वं यौवनाश्वस्य मान्धातु: क्षेत्रमुच्यते ॥
क्षितिज में जहाँ से सूर्य उदय होकर चमकता है और जहाँ सूर्य अस्त होता है वे सारे स्थान युवनाश्व के पुत्र मान्धाता (भगवान् राम के पूर्वज )के अधिकार में माने जाते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ग्यारहवीं कक्षा की एक छात्रा की चर्चा क्यों की भोजनालय वाले नन्द कुमार जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें