15.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *778 वां*

 वेवेंष्टि व्याप्नोति इति विष्णुः । देशकालवस्तुपरिच्छेदशून्य इत्यर्थः।


यस्माद्विष्टमिदं सर्वं तस्य शक्त्या महात्मनः | तस्मादेवोच्यते विष्णुर्विशेर्धातोः प्रवेशनात् ॥



प्रस्तुत है व्यवसित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 15 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *778 वां* सार -संक्षेप


 1=प्रयत्नशील



हम सब राष्ट्र -भक्तों की दृष्टि में भारतीय जीवन दर्शन भारतीय संस्कृति भारतीय चिन्तन जो सृष्टि का आधार है अद्भुत अवर्णनीय और अतुलनीय है

हमारे यहां वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों एवं उपनिषदों में जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है

ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीन समय में  वेदों को विस्तार से समझाने वाले पुराणों की रचना हुई

ये प्राचीन होते हुए भी नित्य नूतन लगते हैं ये अद्भुत पुराण भारतीय संस्कृति के अजस्र प्रवाह को दर्शाते हैं और भारत के वास्तविक इतिहास को जानने की कुंजी हैं

हमारे अन्दर इनके प्रति किसी प्रकार का भ्रम नहीं होना चाहिए

पुराणों में वर्णित है पृथ्वी शेषनाग के फन पर परमाणु के समान स्थित है

शेषशायी( शान्ताकारं भुजगशयनम् )विष्णु के प्रतीक के रूप में ब्रह्माण्ड विज्ञान को समझाया गया है


विवर्धते इति विष्णुः अर्थात् जो फैल रहा है वही विष्णु है

विष्णु जो जगत के पालनकर्ता हैं

विशाल होते चले जा रहे हैं

ब्रह्माण्ड ही विष्णु है जो फैल रहा है  विष्णु शेष पर शयन कर रहे हैं शेष उनसे विशाल हुआ 

शेष का एक अर्थ अनन्त है

अर्थात् शान्त ब्रह्माण्ड अनन्त पर स्थित है इस तरह वैज्ञानिक तथ्य को सरल भाषा में समझाया गया है



शुकदेव महाभारत काल के मुनि थे। वे वेदव्यास जी के पुत्र थे। वे बचपन में ही ज्ञान प्राप्ति के लिये वन  चले गये थे। इन्होने ही परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनायी थी l

परीक्षित पूछ्ते हैं

काल का स्वरूप क्या है

तो शुकदेव मुनि कहते हैं

विषय का परिवर्तन ही काल का स्वरूप है

संसार परिवर्तनशील है इसमें कोई संशय नहीं


पुराणों में इतिहास है और हमारी इतिहास की दृष्टि विलायती लोगों के इतिहास की दृष्टि से अलग है


इतिहास मात्र इतिवृत्त नहीं


वह तो जीवन की दिशा चेतना की तरंग

 मन की गति प्राणों की उमंग 

केवल घटनाओं का वह छायाचित्र नहीं । इतिहास मात्र..... । । 1 । । 

इतिहास जो कि, 

 आवेगों की तरलित धारा कर वेगवती ऊर्जस्वित पौरुष को अदम्य कर देता है

संयम की सरिताओं का कर अद्भुत संगम

 तीरथ कर्मठता का सुरम्य कर देता है

वह प्राणों का संगीत शब्द का ब्रह्मनाद

 केवल काली स्याही से अंकित चित्र नहीं

 इतिहास मात्र..... । । 2 । । 

इतिहास वह कि, 

जो भावी पीढ़ी को रोमाञ्चित करता हो

शोणित में ज्वार जगाता जो सन्देशों से

भावना क्षितिज पर जो तूफान उठा पहले

फिर शमित किया करता गीता उपदेशों से

वह मानवता का मंत्र कर्म का तत्व ज्ञान

 केवल थोथी मतियों से प्रेरित कथ्य नही

 इतिहास मात्र..... । । 3 । ।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य राजकरण जी की चर्चा क्यों की COSMOS पुस्तक की बात कैसे उठी EINSTEIN की पत्नी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें