वर्जनायें हार थक कर बैठ जातीं
वंचनायें मस्त मन-मन गुनगुनातीं
याद डूबी साँझ झपकी ले रही है
और अपने हाथ थपकी दे रही है
ठिठकता हर ठौर, पर टिकता नहीं हूँ ।
गीत मैं लिखता नहीं हूँ । । 1 । ।
पथ अभी भी हार कर आवाज देता
पर न पहले सा चपल अंदाज होता
पंथ ही पाथेय सुख देता रहा है
हर हवन में मन स्वयं होता रहा है
धार में घुलमिल गयी माटी, विरस सिकता नहीं हूँ ।
गीत मैं लिखता नहीं हूँ ।। 2 l l
प्रस्तुत है शर्शरीक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*779 वां* सार -संक्षेप
1 शर्शरीकः =धूर्त
धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी उपस्थिति से हम राष्ट्र- भक्त लोगों को प्रभावित करने वाला एक अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं यह हम लोगों का सौभाग्य है हमें इस मानसिक शिक्षण का लाभ उठाना चाहिए
अच्छे प्रतिसाद के कारण हम लोग नित्य इसे प्राप्त कर पा रहे हैं यह हनुमान जी की कृपा है
समस्याग्रस्त संसार में आनन्द की अनुभूति वाले कुछ क्षण प्राप्त करने के लिए परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस शरीर में मंगलमयता के अनुभव हेतु आइये प्रवेश कर जाएं आज की वेला में
प्राचीन साहित्य के प्रति हमारे मन में उत्साह जाग्रत करने हमारी बच्चों जैसी समझ में परिपक्वता लाने के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य यही है कि प्राचीन घटनाओं का वर्णन हमारे साथ भ्रमित वातावरण में पल रही नई पीढ़ी को कुछ सिखा सके
नई पीढ़ी प्रेरित प्रभावित रोमाञ्चित हो सके हम सब लोगों को मिलकर इसका प्रयास करना चाहिए
आचार्य जी ने व्यास जी और गणेश जी वाली अद्भुत कथा बताई
हमारा साहित्य शश्वच्छान्ति में भंग डालने वाले अधर्म पर चलने वाले लोगों से सचेत करने का एक सुगम उपाय है
हमारे साहित्य में वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों उपनिषदों पुराणों द्वारा जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है
ये सारे तत्व सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचें साधारण से साधारण व्यक्ति के मन में सरलता से ज्ञान अंकित हो इस विचार से प्राचीनकाल से ही प्रयास होते रहे हैं
इस प्रयास में हम भी सम्मिलित हों
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी की चर्चा क्यों की आचार्य जी की पुस्तक गीत मैं लिखता नहीं हूं का शीर्षक किसने दिया था जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण
इति शम्