17.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *780 वां*

 प्रस्तुत है पृथग्जन -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 17 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *780 वां* सार -संक्षेप


 1पृथग्जनः =दुष्ट आदमी



आचार्य जी का कर्तव्यबोध वास्तव में अद्वितीय है जिसके फलस्वरूप हमें उत्थित जाग्रत प्रबोधित परिपुष्ट करने के लिए ये सदाचार संप्रेषण उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए समय सबको उपलब्ध है हम लोगों को  अधिक से अधिक क्षणों का सदुपयोग सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए करना चाहिए प्रातः जागरण सदाचार की भूमिका कही जा सकती है दिन भर का व्यवहार सदाचार का मध्य -आलेख है और सन्ध्या उपसंहार

सत् के साथ आचरण संयुत है और आचरण जीवन का कार्य और व्यवहार है

वास्तव में सदाचारी व्यक्ति कौन है यह समझने का विषय है हम राष्ट्र भक्तों का कर्तव्य क्या है मनुष्यत्व किस ओर संकेत करता है अस्ताचल देशों से भ्रमित होकर हमने अपने ही पुराणों को, अद्भुत साहित्य को, भाषा को हेय दृष्टि से देखा अब समय है यह भ्रम हम दूर करें और भावी पीढ़ी को भी भ्रमित रहने से बचाएं

हमारे साहित्य में वेदों,ब्राह्मणों, आरण्यकों,  उपनिषदों, पुराणों द्वारा जगत की उत्पत्ति जीव का जगत में व्यवहार तथा जगत के मूलाधार परमात्मा का तत्वज्ञानात्मक विश्लेषण किया गया है

वेद अर्थात् ज्ञान

परिवार से व्यवहार प्रतिवेशी से व्यवहार अन्य से व्यवहार ज्ञान की ही बात है यही जगत व्यवहार बौद्धिक ज्ञान है

इसी तरह आध्यात्मिक ज्ञान भी ज्ञान का एक प्रकार है

ज्ञान के विश्लेषण के लिए वेद के बाद वेदांग हैं जो संख्या में छः हैं

सर्वांगपूर्ण परम्परा के वाहक हम लोगों को अपनी भाषा अपने भावों अपने विचारों के प्रति लगाव उत्पन्न हो इसके लिए आचार्य जी  नित्य प्रयासरत रहते हैं 

हमारा सनातन धर्म संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करता है

सनातन स्वयमेव उद्भूत है और स्वयमेव अपनी व्यवस्था करता है

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥

लेकिन हमारे तेज को कोई दूसरा नियन्त्रित करे यह परतन्त्रता है  अपने तेज को स्वयं नियन्त्रित करना अनुशासन है



न वै ताडनात् तापनाद् वहिमध्ये,

न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोSहमस्मि ।

सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं

यतो मां जनाः गुञ्जया तोलयन्ति ।।

हमारे धर्म की अन्य पंथों से तुलना व्यर्थ है

हमारा साहित्य अद्भुत है अप्रतिम है


हमें अपना परिचय देने की आवश्यकता नहीं है हम अतुलनीय हैं 


परिचय के लिये तरसते वे जो सचमुच में हैं बेचारे

पहचान छिपाये फिरते हैं पहचान बनाने के मारे

 परिचय सनाथ उनका जिनके सम्बन्धों को सब ललचाते

फिर भूल स्वयं को गढ़ते हैं जाने कितने रिश्ते नाते

 परिचय अथवा इतिहास रचा करता है हर युग का चारण

 पीढ़ियाँ जिसे गाया करतीं बनता संकल्पों का कारण

 निर्भ्रान्त लक्ष्य-पथ पर चलते रहना ही है निश्चय मेरा

 "दुनियादारों के लिये अजूबा हूँ'' यह भी परिचय मेरा ।


अब समय आ गया है हम अपने को पहचानें आत्मानुभूति ही अध्यात्म है

यही अध्यात्म इस संसार का तत्व है शक्ति है

हमें अपनी संस्कृति अपनी भाषा अपनी सभ्यता अपने धर्म पर गर्व करना चाहिए यही सनातनत्व है



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ओरछा पन्ना की चर्चा क्यों की Smart व्यक्ति का अनाथालय से क्या संबन्ध है

कलियुग के बाद क्या आयेगा आदि जानने के लिए सुनें