20.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *783 वां*

 सनातनधर्म मानव मात्र की प्रिय प्राणधारा है ,

जलधि की ऊर्मियों के बीच सिकतामय किनारा है ,

अभागा जो नहीं समझा इसे वह डूब जाएगा ,

उसे इस जगत में किंचित न कोई भी सहारा है।



प्रस्तुत है अभी ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 20 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *783 वां* सार -संक्षेप


 1 निर्भय



सत्य सनातन धर्म ही, विश्व धर्म अभिराम। 

शौर्य पराक्रम धार कर , बोलो जय श्रीराम। ।


मनुष्य जिस स्थान पर निवास करते करते अभ्यस्त हो जाता है तो संसार का जड़ स्वरूप चेतन होकर उसके साथ संवाद करने लगता है यही कारण है कि संन्यास आश्रम के लिए जाने वाले व्यक्तियों का प्रकृति से सीधा संवाद हो जाता था, उनका शरीर प्रकृतिमय वातावरण में रम जाता था और वे अपने  नाशवान पदार्थों से बने अस्थायी शरीर को विस्मृत कर देते थे

लेकिन शरीर की जटिल संरचना और इसमें चल रही स्वचालित गतिविधियां हमें सोचने के लिए विवश कर देती हैं और तब लगता है कि कोई शक्ति तो है जिसका कोई पार नहीं पा सकता

हमारे सनातन धर्म का यही विश्वास है


इस धर्म के विश्वास में धरती पर प्रकट होने वाले विकारों की शुद्धि के उपाय भी हैं


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।



यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

विभिन्न प्रकार की शुद्धियां चलती रहती हैं यह इतना गहन विषय है कि वेद भी कहते हैं

नेति नेति

इतना ही नहीं है और भी कुछ है


हमारे सनातन धर्म में कथाओं के साथ ज्ञान भी संयुत है उसमें निहित तत्व भी समझ में आने लगता है


आचार्य जी ने श्रीरामचरित मानस का एक रोचक कथानक बताया जिसमें भगवान् राम सीता जी को खोज रहे हैं ऐसे समय में शिव जी ने उनके दर्शन किए हैं मां सती भ्रमित हैं तो शिव जी कहते हैं राम सामान्य मनुष्य नहीं हैं मां सती को फिर पश्चाताप होता है ,फिर उन्हें नया रूप मिलता है आदि आदि


नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू। मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू॥

उमा बचन सुनि परम बिनीता। रामकथा पर प्रीति पुनीता॥


शिव जी जो सुन चुके थे वही बताते हैं यही श्रुति का अर्थ है

सुनते आने की परम्परा अनन्त चलती आ रही है

सनातन धर्म अनन्त है


जब जब होई धर्म की हानि, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।


तब तब प्रभु विविध शरीर धारण करते हैं


हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं इनका मूल भाव यही है कि हम अपना लक्ष्य अवश्य प्राप्त करें


जब भी आपके मन में भाव आएं और उन्हें शब्द मिल जाएं तो इसे भगवान् की अद्भुत कृपा ही कहा जाएगा


आचार्य जी की रचित कविता 'जवानी ' के ये अंश देखिये


जवानी मातृ-मन्दिर के लिये कुर्बान होती है

 जवानी दर्द दिल का शीश का सम्मान होती है

 जवानी शक्ति मन्दिर का सजीला शौर्य का विग्रह

 जवानी ध्यान ध्रुव का और अर्जुन का मनोनिग्रह

 जवानी के लिये संसार का स्रष्टा मचलता है

 कभी वह राम अथवा श्याम बन लिप्सा कुचलता है

 जवानी से से सदा सदा मजबूरियाँ डरती-सहमती हैं

 जवानी अग्निधर्मा कोख है ज्वाला जनमती है ।।



और यह कृपा हम सबको मिले आचार्य जी इसकी कामना कर रहे हैं

अपने को ऊर्जा से भरने के क्षण खोजें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किस राजा का उल्लेख किया आर्यनगर कानपुर वाले डा बुधवार जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें