जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते ।
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
प्रस्तुत है प्रदुष्ट -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*784 वां* सार -संक्षेप
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1 प्रदुष्ट =भ्रष्ट
एक बुजुर्ग डॉक्टर अपने कमरे में मृत मिले
तो विदेश में रह रहे उनके बेटे ने अपनी मां के साथ वीडियो कॉल पर ही उन्हें अंतिम विदाई दी
ऐसा भयावह है हाईप्रोफाइल फैमिली का सच जो पश्चिमी जगत के लिए तो अजूबा नहीं है लेकिन भारतवर्ष के हम जैसे सनातन चिन्तन करने वालों को ऐसी घटनाएं व्यथित कर देती हैं वास्तव में वर्तमान समय में हाई फाई शिक्षा का वास्तविक परिणाम यही है।
मूल भाव को विस्मृत कर आवरण की चर्चा आजकल आम हो गई है
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे हमें अच्छे संस्कार मिल सकें अच्छे संस्कारों पर आधारित मनुष्य जीवन की क्रिया बहुत अद्भुत है जो इसे नहीं समझता वह इस धरती का बोझ है
इन वेलाओं में हमें अच्छे संस्कार मिलते हैं जिनसे हम अपने जीवन को आदर्श बना सकते हैं
तो आइये बिना विलम्ब किए प्रवेश कर लें सनातन धर्म के इस महान तीर्थ सदाचार वेला में
मेदिनीकोश के अनुसार संस्कार शब्द का अर्थ है
प्रतियत्न, अनुभव तथा मानस कर्म
प्रति यत्न
अर्थात् जिसने आपके परिपोषण के लिए यत्न किया है तो उसके उत्तर में यदि आप प्रतियत्न नहीं करते तो आप पापी हैं
आचार्य जी ने अनुभव का अर्थ भी स्पष्ट किया
हम केवल शरीर नहीं हैं जीवन हैं इसलिए मानस कर्म अत्यन्त आवश्यक है
दोषों के निस्सारण के साथ गुणों का आधान ही संस्कार शब्द का वास्तविक अर्थ है
दोषनिस्सारणपूर्वकं गुणाधानक्रिया नाम संस्कारः
धार्मिक अनुष्ठानों से दोषों का निवारण व गुणों का विकास हो सकता है ।
संस्कारों का मानव जीवन से गहरा सम्बन्ध है ।
संस्कार मानव के दैहिक, मानसिक, बौद्धिक परिष्करण हेतु किया गया अनुष्ठान है ।
न्याय शास्त्र के अनुसार संस्कार का अर्थ गुण विशेष है । यह निम्नांकित तीन प्रकार का है
1. वेगाख्य संस्कार
2. स्थितिस्थापक संस्कार
3. भावनाख्य संस्कार
संस्कार तत्व के अनुसार संस्कार शब्द का अर्थ शुद्धि अदृष्ट विशेष कर्म होता है
हमारे यहां षोडश संस्कार हैं
जिनमें ये संस्कार नहीं वे मनुष्य नहीं हैं
अब समय है कि हम सचेत हो जाएं हम अपने को सम्हालें
आत्मचिन्तन करना आवश्यक है
मनुष्य के लिए भावना भी आवश्यक है
आगामी वार्षिक अधिवेशन में बाह्य स्वरूप के अतिरिक्त आत्मीयता आदि को भी परखने की चेष्टा करें
संबन्धों को गहराई अवश्य दें केवल विस्तार से ही काम नहीं चलेगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रेम मनोहर जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया जानने के लिए सुनें