जाति पाँति मत पंथ व्यक्तिहित छोड़ अखंडित राष्ट्र जपें
हम सब एक सनातनधर्मी मंत्र जपें दिन रात तपें।
प्रस्तुत है प्रीणन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*785 वां* सार -संक्षेप
1 = जो प्रसन्न या संतुष्ट करता है
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शिवेतर अर्थात् जो कल्याण से इतर है उसको क्षत करना ही काव्य रचने का उद्देश्य होता है होना चाहिए
आचार्य जी की काव्य रचनाएं इसी उद्देश्य को पूर्ण करती हैं अब इसी रचना को देखिए
दिनरात तन को सोचते जो मन उसी के साथ रख
सुख मानते दिनरात जिह्वा के वशी बहुभोग चख
वे क्या समझ सकते कि यह संसार अद्भुत मंच है
सब मंच मंडप पर चढ़े क्षणजीवियों का संच है
इसलिए अपने को न उनके साथ तुम जोड़ो सखे
शुभ दिव्य जीवन मन्त्र धारो वह कि जिससे शिव लखे
शुभ शिव समर्पित दिव्य जीवन तत्व है वरदान है
यह शक्ति संयम साधना बुद्धत्व का अवदान है
आचार्य जी का भावनात्मक आग्रह रहता है कि इन सदाचार वेलाओं को मन लगाकर हम सुनें और उनमें मनुष्यत्व को परखने वाले भावों को ग्रहण करें सुप्त ऊर्जा को जाग्रत करें ज्ञान का अनुभव करें साधना में रमने का अभ्यास करें और अपने अन्दर इतनी क्षमता लाएं कि हम भी इसी तरह लोगों को उद्बोधित करने लगें
यह कठिन नहीं है क्योंकि हमारा देश अध्यात्मवादी देश है
भारतीय संस्कृति के हम उपासक सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म उस देश में हुआ है जिसने मनुष्य को मनुष्यत्व का बोध कराया है
भारतीय संस्कृति में ही इतनी क्षमता है जो दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित कर सके दुर्लक्ष्य की चाह रखने वाले व्यक्तियों को सबक सिखा सके
भारत का भूगोल तड़पता , तड़प रहा इतिहास है
तिनका-तिनका तड़प रहा है , तड़प रही हर सांस है |
शौर्यमय अध्यात्म की पटकथा लिखने वाले राम और कृष्ण हमारे आराध्य हैं
मन बुद्धि विचार तत्व जो हमारे शरीर की प्राणिक ऊर्जा से संयुत हैं अद्भुत हैं
मैं कौन हूं
शिवोऽहं शिवोऽहम्
ऐसी परम्परा के वाहक हम भ्रमित क्यों रहते हैं
हमको भ्रमित नहीं रहना चाहिए
हम इतने क्षमतावान् हैं कि शून्य से शिखर तक पहुंच सकते हैं
हम गंदगी के परमाणुओं पर ध्यान न देकर आत्मबोध के साथ उन लोगों को साथ में लें जिनमें राष्ट्रनिष्ठा समाजसेवा की ललक है उनको संगठित करें
आचार्य जी ने सहज साधना को परिभाषित किया और बताया कि सहज साधना का परिणाम हमारे सामने है
आचार्य जी ने कहा गांवों को ही तीर्थ बना लें केवल स्वास्थ्य शिविर लगाना पर्याप्त नहीं है लाभार्थियों के प्रति प्रेम आत्मीयता भी आवश्यक है
वार्षिक अधिवेशन में भी प्रेम आत्मीयता के विस्तार पर ध्यान दें
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो,
राह में आये जो दिन दुखी सब को गले से लगाते चलो…
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वार्षिक अधिवेशन के विषय में और क्या बताया भैया पवन मिश्र भैया पंकज का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें