प्रस्तुत है प्राण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*788 वां* सार -संक्षेप
1 = प्राणों के समान प्रिय
06:29, 13.53, 13:47
आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम्, धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना: पशुभिः समाना:।।
आचार्य जी इसकी व्याख्या करते हुए बता रहे हैं कि धर्म से हीन मनुष्य पशु के समान है हमें अपने धर्म के प्रति लगाव होना चाहिए
भारतीय जीवन दर्शन कहता है कि हम परमात्मा के अंश हैं परमात्मा की इच्छा से हमारा अवतरण उसी के द्वारा निर्मित इस संसार में हुआ है उसके सबसे महत्त्वपूर्ण अंश अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म लेने के कारण उसके प्रतिनिधि हैं और जब हम उसके प्रतिनिधि हैं तो अपने शरीर मन बुद्धि चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय व्यवहार आचरण आदि पर गहनता से विचार करें हम भी परमात्मा की तरह क्रियाशील रहते हैं हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें मैं कौन हूं
चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्
कल्याण करना हमारा कर्तव्य हो जाता है अपने लिए ही नहीं जीना अपनों के लिए जीना
और यह अपनापन राष्ट्र और विश्व तक चला जाता है
कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्
वसुधैव कुटुम्बकम्
इतने उदात्त विचारों वाले हमारे धर्म के प्रति भी बहुत से लोग दुर्भावना रखते हैं हमें उनसे सचेत रहना चाहिए
इसके लिए संगठन का महत्त्व अधिक हो जाता है हमारा वज्र चरण रुकना नहीं चाहिए
स्थान स्थान पर संगठन को फलप्रद बनाएं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आकर्षण को कैसे परिभाषित किया भैया डा अमित जी भैया विजय भैया देवर्षि भैया विवेक जी की चर्चा क्यों की कल सम्पन्न हुए राष्ट्रीय अधिवेशन के बारे में क्या बताया जानने के लिए सुनें