चंदन चर्चित भाल है, कण्ठ तुलसिका माल।
पंडित प्रवर बताओ तो, क्या इस जग का हाल। ।
प्रस्तुत है वैरङ्गिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (अनन्त चतुर्दशी )विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*791 वां* सार -संक्षेप
1 = संन्यासी
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परिस्थितियां कैसी भी हों आचार्य जी के मन में जो एक उद्देश्य का भाव रहता है कि हमारा मार्गदर्शन हो इस कारण नित्य हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो पा रहे हैं
यह हमारा सौभाग्य ही है
हम यदि विषम परिस्थितियों में भी उन्नत से और अधिक उन्नत होते रहने का प्रयास करते हैं साथ ही अपने परिवेश को भी समुन्नत करते हैं तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है
हम आनन्दित हो लेकिन प्रतिवेश में आर्तनाद हो तो हम व्यथित हो जाते है क्योंकि हम संवेदनशील हैं हमारा संसार बहुत विस्तार ले लेता है यही संवेदनशीलता मनुष्य को दार्शनिक बना देती है मुमुक्षु बना देती है
मैं कौन हूं
चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्
संसार अद्भुत है यह विकार और अविकार का मिला जुला रूप है इन्हीं के बीच रहकर हमें अपना मार्ग खोजना है
कर्तव्य और अकर्तव्य का हमारे अन्दर विवेक होना चाहिए हमें व्यध्व पर नहीं चलना है
भारतीय जीवन भारतीय परम्परा हमें यही सिखाती है कि हमें यह पता होना चाहिए कि हमारे लिए करणीय क्या है हमारे ऋषियों मुनियों को इसकी अनुभूति हुई और उन्होंने अनेक सद्ग्रन्थों का प्रणयन कर दिया जो हमारे मार्ग को सुस्पष्ट कर देते हैं
हम युगभारती के सदस्य इसी मार्ग पर चलने का प्रयास करते जा रहे हैं
युगभारती का यह तात्विक पक्ष स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है
चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन हमारे लिए लाभकारी है
सेवा समर्पण त्याग वैराग्य शक्ति शौर्य आत्मबोध का संकलन भी सदैव हमारे लिए लाभकारी रहेगा
देश के प्रति सेवा समर्पण का हमारे अन्दर भाव विद्यमान रहे और हम सेवारत भी हों समाज को जाग्रत करने का भी हम प्रयास करते रहें
आचार्य जी ने दर्शन और PHILOSOPHY में अन्तर भी बताया दर्शन इन्द्रियातीत है और PHILOSOPHY इन्द्रियगम्य है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संपूर्ण सिंह कालरा जी का नाम क्यों लिया JAIPUR DIALOGUES की चर्चा क्यों हुई आचार्य जी ने जयशंकर प्रसाद की किस कविता का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें