30.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा /द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *793 वां*

 ध्यान से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह बहुत मूल्यवान् होता है

इसलिए ध्यान महत्त्वपूर्ण है

लेकिन ध्यान और ज्ञान धार्मिक पुरुष में होगा यह अनिवार्य नहीं........


प्रस्तुत है दोः शालिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा /द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *793 वां* सार -संक्षेप


 1 = प्रबल भुजाओं वाला 


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बहुत बार ऐसा होता है कि हमारे जीवन में प्रपंचों की बाढ़ आ जाती है और हमें उन प्रपंचों को सुलझाने में किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलती ऐसे समय में हमें श्री रामचरित मानस की शरण में जाना चाहिए


रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥



मानस अद्भुत ग्रंथ है जिसमें बालकांड और उत्तर कांड इसके दार्शनिक ज्ञानात्मक पक्ष को उजागर करते हैं लेकिन 

मानस के कथा भाग में यदि प्रवेश करें तो प्रपंचों को सुलझाने में हमें मदद मिलेगी


इससे अवर्णनीय शान्ति मिलेगी

विलक्षण प्रतिभा के धनी कवि दार्शनिक चिन्तक दीनदयालु विचारक राष्ट्र -हितैषी विद्वान शब्दोपासक करुणाकर तुलसीदास जी ने कथा दर्शन ज्ञान की इस ग्रंथ के रूप में एक ऐसी सुन्दर माला बना दी जो कभी मुरझाती ही नहीं


आइये इस माला के दर्शन कर लें


प्रभु राम लीला कर रहे हैं

मायामनुष्यं हरिम्



वन गमन का प्रसंग है माता सीता का हरण हो गया है भगवान वन वन उन्हें खोज रहे हैं शिव जी दूर से देख रहे हैं मां सती भ्रमित हैं


सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥

संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥



मां सती   भगवान शंकर की  ऐसी दशा देख भ्रमित हो गईं वे मन ही मन कहने लगीं कि भगवान शंकर की तो सारा संसार वंदना करता है, वे जगत के ईश्वर हैं देवता नर नारी मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं

तो वे भी राम जी को प्रणाम कर रहे हैं

शंकर जी ने समझाया कि लीला करना परमात्मा का स्वभाव है लेकिन उन्हें समझ में नहीं आया

फिर मां सती की लम्बी कथा है उनकी  सिद्धि तक पहुंची साधना अद्भुत थी और फिर वे मां पार्वती के रूप में आईं


भक्तिपूर्वक जिज्ञासु होकर मां पार्वती पूछती हैं


पुनि प्रभु कहहु सो तत्त्व बखानी। जेहिं बिग्यान मगन मुनि ग्यानी॥

भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। पुनि सब बरनहु सहित बिभागा॥


तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना। आन जीव पाँवर का जाना॥

प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई॥



मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह।

रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥ 111।


शिव  जी कुछ क्षणों तक आनंद  में डूबे रहे, इसके बाद उन्होंने मन को बाहर खींचा और प्रसन्नचित्त होकर प्रभु का चरित्र वर्णन करने लगे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सुरेश सोनी जी का नाम क्यों लिया विद्यालय का कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया जानने के लिए सुनें