1.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *794 वां*

 नीलः पतङ्गो हरितो लोहिताक्षस्तडिद्गर्भ ऋतवः समुद्राः।

अनादिमत्त्वं विभुत्वेन वर्तसे यतो जातानि भुवनानि विश्वा॥



प्रस्तुत है प्रक्रान्त ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 1 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *794 वां* सार -संक्षेप


 1 = बहादुर 


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संसार में प्रायः हम सबके जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं

अध्यात्म हमें प्रपंचों में उलझने से बचाता है इसलिए अध्यात्म महत्त्वपूर्ण है

आइये अध्यात्म के दर्शन के लिए आज की सदाचार वेला में प्रवेश कर जाएं



अद्भुत बैखरी से हम सबको अत्यन्त प्रभावित करने वाले आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है


परमात्मा अत्यन्त सक्षम समर्थ है वह हमारी रक्षा करता है वह अत्यन्त कृपालु है हमें उस पर विश्वास करना ही चाहिए  

ज्ञान का प्रकाश परिस्थितियों की अनुकूलता गुरु की प्राप्ति आदि परमात्मा की कृपा से संभव हैं परमात्मा विविध रूपों में हमारे सामने आता रहता है 

श्वेताश्वतरोपनिषद् के इन छंदों में उसकी महानता के दर्शन होते हैं 


अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः।

स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्र्यं पुरुषं महान्तम्‌॥


वह बिना पाणि का होते हुए भी सबको पकड़े हुए है। पैरों के बिना  वह तेजी से चलता है। नेत्रों के बिना देखता है।  बिना कानों के सुनता है। जानने योग्य हर चीज को वह जान ही लेता है। पर उसे कोई नहीं जान पाता

ज्ञानीजनों के अनुसार  वह अग्रवर्ती और विराट पुरुष है।



अणोरणीयान्महतो महीयानात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः।

तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमीशम्‌॥



सूक्ष्मतम से भी सूक्ष्मतर तथा महानतम से भी महानतर आत्मन प्राणियों के हृदय में छिपा हुआ है। स्रष्टा की कृपा से व्यक्ति शोक और कामना से मुक्त होने पर उसे परम आत्मन के रूप में जान लेता है।


यह हमारा सौभाग्य है कि  हमारे ऋषियों ने इन छंदों को रचा उनके मन में कुछ भाव आये और उन्हें  अनुभूति का आनन्द मिला फिर उन्होंने इनकी रचना कर डाली

तुलसीदास जी को भी ऐसा ही आनन्द मिला होगा


तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥



मंदोदरी रावण को समझा रहीं हैं कि राम भगवान् हैं वे सामान्य मनुष्य नहीं हैं


पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥

भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥




पाताल उन विश्व रूप भगवान का चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य जिनके  भिन्न-भिन्न अंगों पर स्थित हैं

 भयंकर काल जिनका भृकुटि संचालन  है। सूर्य नेत्र है,बाल बादलों का समूह है।


उनका विराट् स्वरूप हमें गीता में भी दिखता है

अपने अपने स्तर के अनुसार परमात्मा हमें समझ मे आ सकता है


हमारा साहित्य अद्भुत है ज्ञान का प्रचुर भंडार है हम इस साहित्य के ग्रंथों से अपने जीवन में सब कुछ पा सकते हैं हमें अन्यत्र भटकने की आवश्यकता ही नहीं है

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय में हमें अवश्य रत होना चाहिए


आचार्य जी ने हमारा ध्यान इस ओर भी दिलाया कि 

कार्यक्रमों को करते समय हमें उनका हेतु भी समझ में आना चाहिए

किस कार्यक्रम से कितने कार्यकर्ता मिले इसका भी हिसाब किताब रखें

भाव गहन करेंगे तो शक्ति प्राप्त होगी

समय का सदुपयोग करें


इसके अतिरिक्त मनीषत्व क्या है भैया मोहन जी भैया विनय जी का उल्लेख क्यों हुआ कुमार विश्वास का नाम क्यों सामने आया जानने के लिए सुनें