हम देश के सेवक सदा रहते सतर्क हैं,
बेशक प्रलापवादियों के अपने तर्क हैं।
हम जानकर अनजान बनों को न छेड़ते,
लेकिन बचे सभी को कोशिशों से जोड़ते।
प्रस्तुत है प्रवाहक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 4 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*767 वां* सार -संक्षेप
1: प्रवाहकः =राक्षस
आचार्य जी प्रतिदिन इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमें तत्त्व की कुछ बातें बताते हैं आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हमें आध्यात्मिक भान हो सके
हम सभी शिक्षक हैं यह भान हो सके हम नई पीढ़ी को भ्रमित होने से बचाने वाले मार्गदर्शक हैं यह सुस्पष्ट रूप से समझ सकें
आचार्य जी चाहते हैं कि हम शक्ति भक्ति विश्वास अर्जित कर समाज और राष्ट्र के लिए जाग्रत रहें अपने साध्य को पवित्र साधनों से प्राप्त कर पाएं राक्षसों के तर्कों को नजर अंदाज कर उनसे सतर्क सचेत रहते हुए संगठित रहने के लिए बहुमुखी उपाय खोजते रहें
हमारा अतुल साध्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्
दिन भर ऊर्जस्वित रहने का आनन्दित रहने का यह सर्वोत्तम उपाय है
लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि
इंद्रीं द्वार झरोखा नाना। तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।।
आवत देखहिं बिषय बयारी। ते हठि देही कपाट उघारी।।
से हम भ्रमित न हो जाएं और हमारा ज्ञान रूपी दीपक बुझ जाए आत्मानुभूति का प्रकाश
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥
'सोऽहमस्मि' ( अहं सः अस्मि =वह ब्रह्म मैं हूँ) यह जो अखंड वृत्ति है, वही उस ज्ञान के दीपक की अत्यन्त प्रचंड दीपशिखा है। इस तरह जब आत्मानुभूति का सुंदर प्रकाश प्रसरित होता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का सर्वथा नाश हो जाता है
मिट जाए
इसके लिए प्राणायाम ध्यान अध्ययन स्वाध्याय लेखन उचित खानपान पर हम लोग ध्यान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल संपन्न हुए कार्यक्रम के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें