ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।
प्रस्तुत है परिणामदर्शिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 5 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*768 वां* सार -संक्षेप
1: =दूरदर्शी
संसार अद्भुत है इसमें जगह जगह तीर्थ हैं उनमें सबसे अद्भुत है भारत तीर्थ जहां हमने जन्म लिया है अनेक पवित्र नदियों का सान्निध्य हमें प्राप्त है गो गंगा गायत्री का अद्भुत देश, विश्व को राह दिखाने वाला देश है यह
यहां स्वयं भगवान अवतरित होते हैं
हमारा सनातन धर्म ही वास्तविक धर्म है सर्वोत्तम धर्म है यज्ञमयी संस्कृति के हम उपासक हैं हम भोगमयी प्रवृत्ति के विरोधी हैं ब्रह्म को ही हम सब समर्पित करना चाहते हैं हमारा साहित्य दर्शन विज्ञान अद्वितीय है अब हम सूर्य की उपासना के लिए उसके पास तक जा रहे हैं उनसे प्रसादी प्राप्त कर संपूर्ण विश्व को वितरित करेंगे हमारा परमार्थ भाव ही है वसुधा ही हमारा कुटुम्ब है हमें भ्रमित करने के अनेक प्रयास हुए हैं और आज भी चल रहे हैं कोई सनातन धर्म को समाप्त करने की बात करता है कोई कुछ
अनेक राक्षसी प्रयास चल रहे हैं देवासुर संग्राम संसार का सत्य है इस सत्य को समझने के लिए सदाचार का आश्रय लेना अनिवार्य है यह हनुमान जी का वरदान है हमारे मार्गदर्शन के लिए इससे उचित और क्या हो सकता है इसी लिए आइये प्रवेश करते हैं इस सदाचार वेला में
जब हम अपने परिवेश के कारण उद्वेलनों के भंवर में फंस जाते हैं तब हम असीमित शक्ति वाली भक्ति का आश्रय लेते हैं जब हम उद्वेलनों उलझनों का अनुभव नहीं करते तो शरीर मन बुद्धि वाली सीमित शक्ति का प्रयोग कर संघर्ष करते हैं
इसी पर आधारित गज ग्राह की एक अद्भुत कथा है
गज अर्थात् गजेन्द्र पूर्व जन्म में द्रविड़ देश का पांड्यवंशी राजा इंद्रद्युम्न था । वह भगवान् का एक श्रेष्ठ उपासक था. एक बार वह राजपाठ त्यागकर मलय पर्वत पर रहने लगा
एक बार परम यशस्वी अगस्त्य मुनि अपनी शिष्यमण्डली के साथ वहाँ जा पहुँचे। उन्होंने देखा कि वह प्रजापालन का धर्म और गृहस्थ के लिए उचित आतिथ्य सत्कार भूल करके एकान्त में उपासना कर रहा है, अतः वे राजा पर क्रुद्ध हो गये उन्होंने राजा को शाप दिया कि इसे घोर अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त हो
ग्राह पूर्व जन्म में हू हू नाम का एक श्रेष्ठ गन्धर्व था। एक बार जब देवल ऋषि सरोवर में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे तो उसे शरारत सूझी। उसने ग्राह रूप धारण कर उन ऋषि के पैर पकड़ लिए। क्रोधित ऋषि ने उसे शाप दिया कि तुम ग्राह की तरह अब रहो।
इसी गजेन्द्र को ग्राह ने एक बार पकड़ लिया
वह भगवान् को याद करने लगा
जब भगवान् ने देखा कि गजेन्द्र अत्यन्त पीड़ित हो रहा है, तब वे गरुड़ को छोड़कर कूद पड़े और गजेन्द्र के साथ ही ग्राह को सरोवर से बाहर निकाल लाये। फिर भगवान् ने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुँह फाड़ डाला और गज़ेद्र को छुड़ा लिया ( गजेन्द्र मोक्ष )
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।
मुझमें मन को एकाग्र कर नित्ययुक्त हुए जो भक्तजन परम श्रद्धा के साथ मेरी उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं
हमें सहज ध्यान करना चाहिए हम कौन हैं हमें अपने मनुष्यत्व की पहचान होनी चाहिए कर्म करने का अधिकार भगवान् ने हमें दिया है हमें आभार व्यक्त करना चाहिए
यह मानव का शरीर स्रष्टा की दिव्य धरोहर है,
शिव साधन कर्मों का धर्मावृत रूप मनोहर है,
अन्याय न हो इसके प्रति जिम्मेदारी अपनी है,
यह दिव्य रूप इसमें अनुपम आनन्द सरोवर है।
इसके अतिरिक्त किसने कहा चन्द्रमा पर बहुत सोना मिला है जानने के लिए सुनें