6.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *769 वां*

 हे ! आदिस्वरा कल्याणी संस्कृत नमो नमो,

हे! देवों की शुभ वाणी संस्कृत नमो नमो, 

हे ! आदिकाव्य की भाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! संस्कृति की परिभाषा संस्कृत नमो नमो, 

हे ! तत्वशक्ति का अर्पण संस्कृत नमो नमो, 

मानवमूल्यों का दर्पण संस्कृत नमो नमो ,

हे! वैदिक ऋचा -मंत्र -उच्चारण नमो नमो, 

हे! सृष्टि सर्जना का शिव कारण नमो नमो।


प्रस्तुत है  परीणामदर्शिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 6  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *769 वां* सार -संक्षेप


 1:  =दूरदर्शी



यज्ञमयी संस्कृति के उपासक हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के पथप्रदर्शन के लिए माङ्गलिक आचार्य जी पुनः सदाचार वेला में उपस्थित हैं आइये समय का सदुपयोग करते हुए  व्यक्तिगत स्वार्थ को किनारे करते हुए परमार्थ का भाव रखते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें जिससे समाज और राष्ट्र का तानाबाना उदात्त बन सके

हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन प्राणायाम लेखन में रत हों हम अपनी भीरुता और पराश्रयता को समाप्त करने का प्रयास करें अपने परिवेश को संस्कारित करने का हम लोग लगातार प्रयास करें 




मुनित्रय पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि अन्त: प्रेरणा प्राप्त मुनि माने जाते हैं ॐ के अनुनाद से प्रारम्भ हुई भाषा को व्यवस्थित स्वरूप देने में पाणिनि का अद्भुत योगदान है। उपवर्ष गुरू के शिष्य पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े  वैयाकरण हुए हैं। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जो' तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण भी करता है। इसमें भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक,आर्थिक, शैक्षिक और दार्शनिक प्रसंगों की भरमार है आठ अध्यायों 3995 सूत्रों वाली अष्टाध्यायी का अन्य भाषाओं पर भी बहुत प्रभाव पड़ा है । वैदिक भाषा को गेय,विश्वस्त, बोधगम्य, सुन्दर बनाने में पणिन और दाक्षी पुत्र शालातुरीय अर्थात् पाणिनि अग्रणी हैं अष्टाध्यायी विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत  के अध्ययन हेतु आधार ग्रंथ है और इसने संस्कृत भाषा को स्थायित्व प्रदान किया और तब यह भाषा अपरिवर्तनशील बन गई  हमारी संस्कृति के ऋषि पाणिनि को माङ्गलिक आचार्य कहा गया है उनके हृदय में मंगल करने वाले कर्म करने की इच्छा थी


आचार्य जी ने काशिकावृत्ति की ओर संकेत किया काशिकावृत्ति प्राचीन व्याकरण शाखा का ग्रन्थ है। इसमें पाणिनिकृत अष्टाध्यायी के सूत्रों की वृत्ति (संस्कृत: अर्थ) लिखी गयी है।


आचार्य जी ने बताया पूर्व राष्ट्रपति डा राधाकृष्णन का दर्शन पाश्चात्य प्रभावित रहा है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां से उद्बोधन दे रहे हैं भैया पंकज का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें