हवा का रुख समय पर भांप लेते जो ,
प्रभंजन से सहज टकरा सके हैं वो।
समय पर जो न जागे नींद को तजकर ,
मिला उनको नहीं कुछ राम को भजकर ।
समस्याएं सदा संसार की पर्याय होती हैं ,
किसी को चुभन कुछ को दाय होती हैं ।
अगर है जन्म तो जीवन मरण भी है ,
हुआ यदि अवतरण तो उद्धरण भी है ।
रहेगा ध्यान यदि अस्तित्व का अपने ,
समस्या लगेंगी ज्यों रात के सपने ।
प्रस्तुत है लोकज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 7 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*770 वां* सार -संक्षेप
1: =संसार को जानने वाला
ज्ञान के असीमित विलक्षण स्रोत रूपी ये मानस तीर्थ रूपी सदाचार संप्रेषण हमें उपलब्ध हैं जो हमें सत्य क्षमा सहजता दया का पाठ पढ़ाते हैं यह ईश्वर की कृपा है
दम तोड़ती मानव जाति को अनुप्राणित करने वाली भारतीय संस्कृति के वंशज हम लोगों को संसार को जानते हुए समस्त आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान यहां मिलेगा इसमें कोई संशय नहीं
आइये आज के कथा -वाचन रूपी वाचिक शिक्षण का लाभ उठाने के लिए प्रवेश कर जाएं इस सदाचार वेला में
जब हम इन संप्रेषणो को सुनते हैं तो लगता है हम नित्य तीर्थ कर रहे हैं क्योंकि सांसारिक प्रपंचों के कारण डूबे हुए हम लोगों को किनारा मिल जाता है सत्य,क्षमा, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, प्राणियों पर दया,सरलता, दान, मन का संयम, संतोष, धैर्य, उचित खानपान
सब तीर्थ हैं ब्रह्मचर्य परम तीर्थ है आचार्य जी ने मानस तीर्थ को विस्तार से बताया
विलायती लोगों
सन इव खल पर बंधन करई। खाल कढ़ाई बिपति सहि मरई॥
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी। अहि मूषक इव सुनु उरगारी॥9॥
ने हम लोगों को वश में करने के लिए ही हमें मानस तीर्थ से दूर किया
हमारी शिक्षा को दूषित किया
हमें आवश्यकता है मानस तीर्थ की हम इसे त्यागे नहीं
हम लोग ऐसे देश में जन्मे हैं
जिसने संपूर्ण विश्व को ज्ञान की राह दिखाई है
एतद् देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रां शिक्षरेन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।
सम्पूर्ण विश्व के किसी भी भाग से ज्ञान की चाह रखने वाले मनुष्य ज्ञान की खोज में भारत आएंगे और यहां के सुसंस्कृत साहित्य एवं संस्कृति से नैतिकता और चरित्र की शिक्षा ग्रहण करेंगे
हमारे लिए मोह का त्याग आवश्यक है
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥
हम अहंकार कपट दम्भ आदि से दूर रहें
अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ॥
तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुन तिजारी॥18॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण सिंह जी भैया सुरेश गुप्त जी भैया पंकज जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें
जो पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानता है परिवार भाव हमें आनन्दित करता है
हम जहां जाते हैं वहीं हमें परिवार मिल जाता है लेकिन हमारा कुटुम्ब पवित्र रहे हम इसका प्रयास करते हैं और करते भी रहना चाहिए