8.9.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 सितम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *771 वां

 अध्ययन स्वाध्याय चिंतन मनन ध्यान 

भारतीय संस्कृति का दिव्यतम कोष है, 

अमर गिरा की दिव्यवाणी का प्रभाव पुंज 

विश्व-संस्कार का अखंड उद्घोष है, 

मानव का पौरुष परुष हो कि पुरुषार्थ 

इसके जवाब का सरल विश्वकोश है ,

भारत सदैव "भा" में रत रहते हुए भी 

दुष्टता -दलन हेतु मेघसंघोष है।



प्रस्तुत है  वनोकस् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8  सितम्बर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *771 वां* सार -संक्षेप


 1:  =तपस्वी



अनुगच्छतु प्रवाहम्


समय कह रहा है कि सदाचार संप्रेषणों के इस अखंडित प्रवाह का हम लोग लाभ प्राप्त कर लें विकारों को दूर कर  सद्विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को उन्नत बना लें क्योंकि हमारा जन्म ही उस परम अद्भुत तपोभूमि में हुआ है जो विश्व -संस्कार का अखंड उद्घोष है जो पुरुष को पुरुषार्थ करने की प्रेरणा  है  जो निशा में विचरण कर रहे मनुष्यों का मार्गदर्शक है मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराने वाला   है 


(डा शान्तनु बिहारी)स्वामी अखंडानन्द जी, जिनका जन्म शुक्रवार 25 जुलाई 1911 को वाराणसी के महारय गाँव में हुआ था,के अनुसार भारत विश्व की राजधानी है



विश्वम्भर मिश्र,निमाई पण्डित, गौराङ्ग महाप्रभु, गौरहरि, गौरसुंदर, श्रीकृष्ण चैतन्य भारती आदि नामों से भी सुशोभित चैतन्य महाप्रभु जिनका जन्म फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि  18 फ़रवरी 1486 को नवद्वीप (नादिया ज़िला), पश्चिम बंगाल में हुआ था के एक शिष्य सनातन गोस्वामी (पूर्व नाम अमरदेव )जो पितामह की मृत्यु पर अठारह वर्ष की अवस्था में उन्हीं के पद पर नियत किए गए जिन्होंने उत्कृष्ट योग्यता से कार्य सँभाल लिया जो हुसैन शाह के समय में  प्रधान मंत्री हो गए जो दरबारे खास की उपाधि से भी नवाजे गए 

का आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया


सनातन गोस्वामी ने बहुत सारे विग्रहों को खोजकर उनकी सेवा का प्रबंधन किया,बहुत से लुप्त तीर्थों का उद्धार किया और अनेक ग्रंथ लिख डाले

बृहत् भागवतामृत,वैष्णवतोषिणी, श्रीकृष्णलीलास्तव आदि कुछ प्रमुख ग्रंथ हैं

ऐसा अद्भुत देश है भारत जहां ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं

 उत्थान पतन संसार का स्वभाव है भारत को भी खंडित करने के सनातन धर्म को नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए हैं और आज भी चल रहे हैं हमें बांटने का कुत्सित प्रयास कई बार हुआ है

फिर भी सनातन धर्म अक्षुण्ण है

हे पार्थ प्रण पूरा करो अभी दिन शेष है कहने वाले भगवान् कृष्ण और निसिचर हीन करउँ महि कहने वाले भगवान् राम का देश है यह

तो हम निराश क्यों रहें

ऐसे जीवन दर्शन वाले देश में जन्मे हम लोगों में निराशा भय भ्रम का क्या काम

भोगवादी निराश होते हैं कर्मयोद्धा निराश नहीं रह सकता

सनातन को संगठित करने की आवश्यकता है हम इसका ध्यान रखें

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया त्रिलोचन जी भैया अनुराग त्रिवेदी का नाम क्यों लिया अर्जुन जयद्रथ का क्या प्रसंग है रामकृष्ण मिशन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें