10.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *803 वां*

 प्रस्तुत है अमोघवाच् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 10 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *803 वां* सार -संक्षेप


 1 जिसके शब्द कभी व्यर्थ न हों 


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आचार्य जी ने हाल में ही रचित अपनी एक कविता सुनाई जो हमारे जीवन का दर्शन है हम भौतिकता से इतर चिन्तनरत हों इस ओर यह रचना संकेत कर रही है

 यह कविता अद्भुत भक्ति श्रद्धा विश्वास प्रेम आत्मीयता वाली भारतीय संस्कृति की विशेषता उजागर कर रही है

 हमें संसार की समस्याओं से जूझने का हौसला दे रही है

हम परमात्मा का अंश हैं यह अनुभूति करा रही है और जब हम परमात्मा का अंश हैं तो भय और भ्रम क्यों हो 

राष्ट्रवादी चिन्तन की ओर इंगित करती यह कविता अद्भुत है 

यह आचार्य जी को प्राप्त एक  अनोखा मानवीय वरदान हैं कि वे अपनों भावों को जो अभिव्यक्तियां दे देते हैं वो देखते ही बनती हैं

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम भी लेखनयोग की महत्ता को समझें 

आइये इस कविता के भावों की गहराई में डूब जाएं 


मन भावुक तन पुलकायमान जाग्रत विवेक आनन्दित है 

तन मन जीवन चैतन्य युक्त विक्रम प्रज्ञान प्रमंडित है 

हम सतत प्रयास परिश्रम हैं परमेश्वर के विश्वासी हैं

बदरी केदार द्वारका मथुरा हम रामेश्वर काशी हैं

हम जगत्पिता के अंश वंश देवोपम ऋषियों वाले हैं

हम हैं प्रकाश के पुंज रूप में मेघ श्याम मतवाले हैं

हम अचल हिमालय की समाधि सागर लहरों की उथल पुथल 

हम वृन्दावन की धूलि  और संगम का पावन गंगा जल  

हम सत्य सनातन वेदमन्त्र गीतायुत शुचि समरांगण हैं

पौराणिक कथा मन्त्र गायक हम आदि सृजन के प्रांगण हैं 

हम आत्मतुष्ट जगतीतल को परिवार मानने वाले हैं

निज स्वाभिमान  के संपोषक जगजीवों के रखवाले हैं 

अंबर को पिता धरित्री को निज माता कहते आये हैं 

भगवान भरोसे रहकर सारे  संकट सहते आये हैं 

हम आत्मबोध से युक्त कर्मयोद्धा निस्पृह संन्यासी हैं 

लघु क्षरणशील तन को धारे हम अजर अमर अविनाशी हैं 

हम मंगलमय विधान जग का संकल्पों की परिभाषा हैं 

दुःख दुविधाओं से ग्रसित व्यथित मानव जीवन की आशा हैं

हम ऋषियों की साधना वीरपुत्रों का अतुल पराक्रम हैं 

रचनाकर्ता की आदिसृष्टि का सफल सजीव उपक्रम हैं 


हम सृजन प्रलय की कथा सुनाने वाले मंचमनीषी हैं 

जगजीवों के रक्षक पोषक अनुतोषक और हितैषी हैं 

.......


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनोज अवस्थी जी भैया दिनेश जी भैया विनय अजमानी जी भैया पंकज पांडेय जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें