प्रस्तुत है अमोघवांछित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 9 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*802 वां* सार -संक्षेप
1 जो कभी निराश न हो
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इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत और शुद्ध रखें, हम प्रयास करें कि मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की पूजा करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित का कार्य करें , परस्पर प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, वर्तमान समय में संगठन का महत्त्व समझें,आस्तीन के सांपों से सावधान रहें,दुष्टों के लिए अग्नि के समान दिखें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का तरीका पता रखें,व्यवहार को भी जीवन का एक आवश्यक अंग बनाए रखें, सकारात्मक सोच के लिए आवश्यक उपाय करते रहें
यहां इस बात का आह्वान है कि हम युगभारती के सदस्य केवल इन्द्रियों के विषय स्थूल देह और मन के स्तर पर ही न रहे जो हमारे व्यक्तित्व का बाह्यतम पक्ष है हम अपने आंतरिक पक्ष को भी सशक्त बनाएं, व्यक्तिगत सामान्य परिचय के साथ साथ कर्म का उल्लेखनीय परिचय देने के लिए योजनाएं बनाएं और उन योजनाओं पर कर्मरत हो जाएं, अपनी संतानों को भी उसी तरह तैयार करें, भारतीय विचारधारा की धर्म -ध्वजा को थामने का संकल्प लें
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
इस संसार में कर्ममय होते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए
भगवान शंकराचार्य जी मात्र ३२ वर्ष जीवित रहे लेकिन उनका अद्भुत कर्ममय जीवन रहा उन्हें ८ वर्ष में तो चारों वेद का ज्ञान हो गया १२ वर्ष की अवस्था में संपूर्ण शास्त्रों में पारंगत हो गए १६ वर्ष में अनेक भाष्य कर लिए इसके बाद उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण किया चार मठों की स्थापना की
इसी तरह विवेकानन्द शिवा जी का जीवन था
योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।
समतायुक्त मनीषी जन कर्मजन्य फल का परित्याग कर जन्मरूप बन्धन से मुक्त होकर निर्विकार पद को पा लेते हैं।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने माध्यमिक शिक्षा की महत्ता को किस प्रकार बताया आचार्य जी वृन्दावन कब जा रहे हैं, भैया विनय जी भैया संपूर्ण जी भैया दिनेश जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें