14.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *807 वां*

 ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।



प्रस्तुत है दानवेय -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 14 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *807 वां* सार -संक्षेप


 1 दानवों का शत्रु 




06:20 , 16.30 MB, 16:36

स्थान :उन्नाव 


सदाचारमय विचारों का संप्रेषण कर  आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हमें लाभान्वित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है आइये यह लाभ प्राप्त करने के लिए, जिससे हमारा जीवन भी स्पष्ट लक्ष्य के साथ व्यवस्थित होता रहे आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत से उन्नत होता रहे और सांसारिक दृष्टि से भी प्रतिष्ठित होता रहे साथ ही हमारा शारीरिक बौद्धिक मानसिक कल्याण होता रहे


नियमित रूप से इन संप्रेषणों को सुनने का संकल्प करते हुए प्रवेश कर जाएं इस साधना में




स्मृतियां मनुष्य की निधि भी हैं और बोझ भी हैं लेकिन बोझिल कुछ भी अच्छा नहीं होता है  गीता ज्ञान इसी कारण आवश्यक है क्योंकि वह हमें सिखाता है कि कोई काम बोझिल नहीं है काम सहज रूप से होते जा रहे हैं

हम कोई काम नहीं करते कोई करवाता है शरीर भी अपना नहीं है वो भी किसी का बनाया हुआ है लेकिन उस रचनाकार पर यदि हम विश्वास कर लें तो वही हमारा रक्षक मार्गदर्शक अभिभावक सब कुछ हो जाता है वही हमें भयानक से भयानक संकटों से निजात दिला देता है भक्ति में शक्ति है

इस भक्ति को अपने अंदर धारण करने की पात्रता आ जाए इसकी हम परमात्मा से नित्य कामना करते हैं

हमारे कर्म कैसे हों इस पर अवश्य विचार करें 

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म और अकर्म  में बुद्धिमान भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिये मैं तुम्हें कर्म कहूँगा जिसको जानकर तुम संसार के बन्धन से मुक्त हो जाओगे।


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


अपने आप जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहने वाला,  द्वन्द्वों  मत्सर से रहित,  सिद्धि असिद्धि में समान भाव वाला पुरुष कर्म करके भी नहीं बंधता है।


सभी कुछ ब्रह्म है इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में लगे मनुष्य का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है।।

इस भाव से ही हमें राष्ट्र सेवा समाजसेवा के काम करने चाहिए 


आज भी हमें दानवेय दिखते हैं लेकिन हमें इनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि हम उस भारतभूमि के निवासी हैं जहां भगवान राम यह कहकर


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

भगवान कृष्ण यह कहकर


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

हमें बल देते हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी तीर्थयात्रा के दौरान विद्या अविद्या के बारे में कहां बताया आचार्य जी ने कल्याण पत्रिका की किस लघुकथा का उल्लेख किया

आदि जानने के लिए सुनें