15.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *808 वां*

 नमो देवी विश्वेश्वरी प्राणनाथे सदानन्दरूपे सुरानन्दे ते। नमो दानवांतप्रदे मानवानामनेकार्थदे भक्तिगम्यस्वरूपे ॥ 


न ते नामसंख्यां न ते रूपमीदृक्तथा कोऽपि वेदादिदेवस्वरूपे।


हे विश्वेश्वरी ! हे प्राणों की स्वामिनी ! हमेशा आनन्दस्वरुप में रहने वाली, देवताओं को भी आनन्द प्रदान करने वाली हे देवी ! आपको नमस्कार है।

 दानवों का अंत करने वाली,हम मनुष्यों की सारी कामनाएं पूर्ण करने वाली और भक्ति से अपने रूप का दर्शन देने वाली हे देवी! आपको नमस्कार है।



प्रस्तुत है आपच्चिक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 15 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *808 वां* सार -संक्षेप


 1 कठिनाइयों को पार करने वाला 



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जीवन एक यात्रा है इसमें सुख दुःख हर्ष विषाद सफलताएं विफलताएं कठिनाइयां आती रहती हैं हमें न तो यात्रा से घबराना चाहिए न इससे विमुख होना चाहिए 

आज शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन है नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के माता शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है

देवी से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि हम दया के पात्र न बनें हमारे अन्दर शक्ति और भक्ति का समन्वय हो हम यम नियम का पालन करें जिससे हम भी आशीर्वाद देने वाली मुद्रा में ही रहें

हम कर्म का शरीर धारण किए मनुष्य हैं 

हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें तो देवत्व की अनुभूति अपने आप आती है मनुष्यत्व की यात्रा मनुष्यत्व से ईश्वरत्व तक है सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का भाव लेकर देवी से हम प्रार्थना करें

कि भयों से निरन्तर हमारी रक्षा करें संसार में अनेक प्रकार के भय रहते हैं लेकिन हमें भयाक्रान्त नहीं रहना चाहिए

रोगों को उत्पन्न करने वाली शरद ऋतु और वसंत ऋतु प्राणियों के लिए दुर्गम हैं आत्मकल्याण की कामना करने वाले व्यक्ति को नवरात्र का व्रत करना ही चाहिए

आचार्य जी ने कुछ शस्त्रोक्त विषय बताए जैसे कितने कितने वर्ष की कन्याएं पूजन योग्य हैं

और पूजन दरिद्रता का नाश करता है पूजन में भक्ति विश्वास भाव समर्पण आवश्यक है 

स्वार्थ से दूर रहना भी आवश्यक है 

रोगी वृद्ध और बालक के लिए व्रत वर्जित है


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम युगभारती के सदस्यों को अखाद्य की ओर तो दृष्टि रखनी ही नहीं चाहिए और शिक्षकत्व का दायित्व  संभालकर अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चण्डिका त्रिमूर्ति शाम्भवी का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें