16.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *809 वां

 प्रस्तुत है सर्वङ्कष -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 16 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *809 वां* सार -संक्षेप


 1 दुष्टों का शत्रु 




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समय ऐसा है कि हम सब बहुत व्यस्त रहते हैं लेकिन इस व्यस्तता में भी यदि सात्विकता की ओर उन्मुख करने वाले हमें कुछ क्षण मिल जाएं तो इसे भगवान् की कृपा समझना चाहिए


और इन क्षणों से हमें लाभ भी मिलता है इन सदाचार वेलाओं से हमें ऐसे ही सात्विकता की ओर उन्मुख करने वाले क्षण प्राप्त हो रहे हैं ज्ञान भक्ति चिन्तन व्यवहार शक्ति शौर्य प्राप्त हो रहा है आइये इनसे लाभ प्राप्त करें


सात्विकता महत्त्वपूर्ण है लेकिन यदि इसके साथ शौर्य का समन्वय हो तो यह अत्यन्त कल्याणकारी हो जाती है यही शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म है


भारतीय साहित्य कितना अद्भुत है कि इसमें ज्ञान विज्ञान वेद शास्त्र कथा तत्त्व आदि बहुत कुछ है




परीक्षित के पुत्र जन्मेजय और व्यास जी की परस्पर वार्तालाप पर आधारित ग्रंथ श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


दुर्गासप्तशती जिसका नवरात्र में हम लोग पाठ करते हैं इसी  का अंश है


कलियुग का एक विचित्र प्रकार का धर्म है

परीक्षित के समय से कलियुग का प्रारम्भ हो गया था 

युग धर्म का प्रभाव विपरीत नहीं होता काल ही धर्म और अधर्म का कर्ता है


कालः कालस्य कारणम्


काल ही काल का कारण होता है सतयुग त्रेता द्वापर में

पुण्यशाली दानव्रत करने वाले लोग हुए तो कलियुग में दुराचारी लोग  हुए

मनुष्य जिस युग में भी है वह प्रयास करता है उससे मुक्त होने का

उस मुक्ति के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है इसलिए



हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥


बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर

हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर

ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए

ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥


हम चले थे विश्व भर को प्रेम का संदेश देने

किंतु जिन को बंधु समझा आ गया वह प्राण लेने

शक्ति की हम ने उपेक्षा की इसीका दंड पाया

यह प्रकृति का ही नियम है अब हमे यह जानना है ॥


जग नही सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन

सिर झुकाता है उसे जो कर सके रिपु मान मर्दन

हृदय मे हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर मे प्रबल हो

यह सफलता मन्त्र है करना इसी की साधना है ॥


यह न भूलो इस जगत मे सब नही है संत मानव

व्यक्ति भी है राष्ट्र भी है जो प्रकृति के घोर दानव

दुष्ट दानव दमनकारी शक्ति का संचय करे हम

आज पीडित मातृभू की बस यही आराधना है ॥



आचार्य जी ने देशदर्शन का परामर्श दिया और कहा किसी भी कार्यक्रम को करने के बाद यह देखें कि उससे कितने लोग आगे कंधा से  कंधा मिलाने के लिए  खड़े हो गए यज्ञीय भाव रखें 

विषम परिस्थितियों में समर्पण न कर प्रयास करें 

कि उनसे बाहर कैसे निकलें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरुशरणानन्द जी के पुस्तकालय के बारे में क्या बताया डा सुनील गुप्त जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें