पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः॥
प्रस्तुत है अनुव्रत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
810 वां सार -संक्षेप
1 भक्त
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विस्तार ले रही इन सदाचार वेलाओं, जिनके प्रति हम सबका लगाव भी बहुत अधिक है, का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत रखें, हम प्रयास करें कि हमारी मालिन्य से विमुखता बनी रहे, पौरुष और पराक्रम के अनुव्रत बनें , मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , परस्पर प्रेम और आत्मीयता का भाव बनाए रखें, कलियुग में जन्म लेने के कारण और दुष्टों के कारण संगठन का महत्त्व समझें, मन बुद्धि चित्त अहंकार का अद्भुत खेल समझें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का सलीका समझें ,सकारात्मक सोच बनाए रखें
आइये एक बार फिर प्रवेश कर जाएं सनातनमय वातावरण में आचार्य जी की अद्भुत वैखरी का श्रवण करने के लिए
किसी भी विषय भाव क्रिया विचार की अति नहीं होनी चाहिए
अतिरूपेण वै अतिगर्वेण रावण: ।
अतिदानात् बलिर्बद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत् ।।
इसलिए संतुलन बहुत आवश्यक है मनीषियों में जब अध्यात्म की अति हो गई तो संपूर्ण विश्व पर नियन्त्रण करने वाले संपूर्ण विश्व का भरण पोषण करने वाले संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब् मानने वाले अपने चक्रवर्ती सम्राटों की एक वृहद् अभिधानमाला लिखने वाले परोपकार की भावना सतत बनाए रखने वाले हम संकुचित होते चले गए
इसलिए किसी की अति नहीं होनी चाहिए
प्रकृति में देने की भावना होती है बाहर दिखने वाली स्थूल प्रकृति सूक्ष्म रूप में हमारे अन्दर विद्यमान रहती है इसलिए हमारे अन्दर भी परोपकार की भावना होती है
उस प्रकृति के आधार पर हम अपना परिचय देते हैं
हम कौन हैं हम भारतवर्ष के हैं
जैसे स्वामी रामतीर्थ स्वयं भारतवर्ष का परिचय थे
उनके खोजपरक व लीक से हटे हुए विचारों से युवा वर्ग प्रभावित हुआ भगवान् श्रीकृष्ण और अद्वैत वेदान्त वाले निबंधों ने भारत में एक नव वैचारिक क्रांति को जन्म दिया
इसी तरह विवेकानन्द के विचारों को दुनिया ने माना
हम स्नेहोपासक हैं विदेशी आक्रांताओं को भी हमने समाहित कर लिया
देश का विभाजन भी हुआ जो दुर्भाग्य था
फिर देश का नियन्त्रण भी गलत हाथों में हो गया
गांधी जी की हत्या हुई
ये घटनाएं हमें शिक्षा देती हैं
कहां हमसे गलती हुई कहां सुधार की आवश्यकता है यह दिखाती हैं
आज का युगधर्म शक्ति उपासना है हमारे अन्दर ऐसी शक्ति आए कि लोग फैसला करवाने आएं स्थान स्थान पर शक्तिकेन्द्र विकसित हों हमारी ऊर्जा ऊष्मा लोगों को अनुभव हो हम तो परमात्मा के जीवित जाग्रत अंश हैं
इसके अतिरिक्त भैया राघवेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें