18.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *811 वां*

 ध्यान मूलं गुरु मूर्ति पूजा मूलं गुरु पदम्।

मंत्र मूलं गुरु वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा॥१॥



प्रस्तुत है प्रवर्ह ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 18 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *811 वां* सार -संक्षेप


 1 सर्वोत्तम 




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इन सदाचार  वेलाओं का मूल लक्ष्य है कि हम अपनी बुद्धि प्रबोधित रखें, हम प्रयास करें कि  हमारी मालिन्य से विमुखता बनी रहे, हम शौर्य पराक्रम के तापस बनें , समय शक्ति और धन को व्यय करते समय आनन्द का अनुभव करते हुए यज्ञीय भाव से समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , परस्पर प्रेम और आत्मीयता को निधि बनाए रखें, ,सकारात्मक सोच की महत्ता को जानें, अपने भीतर की छिपी हुई शक्तियों को पहचानें, घोर भौतिकवादी न बने रहें अध्यात्म की अनुभूति भी करें 


संयोग और सामञ्जस्य मनुष्य जीवन की अमूल्य विधियां और निधियां हैं

यह भी एक संयोग है कि हमें ये अत्यन्त लाभकारी सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं

आइये आज के संप्रेषण में प्रवेश कर जाएं



हम सब के अन्दर कवित्व है जो कभी लिखे हुए शब्दों के माध्यम से दिखता है कभी वाणी से प्रकट होता है तो कभी अपने कार्यों से दिखता है


कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभू । कवि मनीषी है, परिभू' अर्थात् अपनी अनुभुति के क्षेत्र में सभी कुछ समेटने में भी सक्षम है और स्वयंभू अर्थात् जो अपनी अनुभूति हेतु किसी का ऋणी नहीं है कहने का अर्थ यह है कि काव्य उस मनीषी की सृष्टि है जो सर्वज्ञ सम्पूर्ण है।

कवित्व अद्भुत है हमारे यहां साहित्य का प्रारम्भ ही काव्य से हुआ है

देवासुर संग्राम अनन्त काल से चल रहा है आजकल इजरायल हमास युद्ध से हम प्रभावित हैं

ऐसे समय में संगठन का महत्त्व अधिक हो जाता है हम इस ओर ध्यान दें हम राष्ट्र-भक्त उन लोगों पर भी ध्यान दें जिन्हें अपना राष्ट्र प्रिय नहीं है स्वार्थी हैं वोट और नोट के लालची हैं उन्हें जगह जगह बेअसर करें

इन्हें बेअसर करने के लिए सात्विक शक्ति की उपासना आवश्यक है रामकथा से शिक्षा लेने की आवश्यकता है क्यों कि रामकथा शक्ति और भक्ति की आराधना है  और तब  हम संगठित होकर उन्हें बेअसर कर सकते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी  भैया डा सुनील गुप्त के नये भवन में आज क्यों जा रहे हैं दीनदयाल जी का उल्लेख क्यों हुआ फिलिस्तीनी दूतावास का क्या प्रसंग है विकार क्यों आवश्यक हैं जानने के लिए सुनें