प्रस्तुत है ज्ञान -वाङ्क ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
817 वां सार -संक्षेप
1 ज्ञान का समुद्र
प्रस्तुत है आत्मविश्वास जगाने वाली आज की वेला
इसे हम ध्यानपूर्वक सुनें और गुनें
संसार आकर्षण भी है संसार विकर्षण भी है संसार समस्या भी है और समाधान भी है
संसार हमें चारों ओर से घेरे है
वनेषु दोषा प्रभवन्ति रागिणाम्, गृहेषु पञ्चेन्द्रिय निग्रहः तपः । .
वनों में भी रागी को राग घेर लेता है और विरागी घर में रहकर भी विरक्त रह सकता है
अद्भुत हैं कवि
आचार्य जी की यह कविता भी अद्भुत है
भावना नियति की आंच न जब सह पाती...
आइये मानस में प्रवेश करें
मां कैकेयी ने चक्रवर्ती सम्राट दशरथ की युद्ध में निःस्वार्थ भाव से सहायता की लेकिन वे दासी के प्रभाव में आ गईं
मर्यादित रहते हुए दशरथ कैकेयी के प्रति आत्मार्पित हैं
होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।
मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥33॥
लेकिन बुद्धि भ्रमित हो जाए तो कुछ नहीं किया जा सकता कैकेयी नहीं मानी
ऐसे ही बुद्धि -भ्रमित लोग हमारे देश में हैं जो सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं इस कारण स्थिति विषम हो जाती है
भगवान् राम को वन जाना होता है
राम का जीवन संघर्ष तपस्या शौर्य का है इसलिये राम- राज्य की परिकल्पना की गई है कृष्ण -राज्य की नहीं
आचार्य जी ने ,बताई
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें