मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?
मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?
प्रस्तुत है भाव -मन्दाकिनी ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
821 वां सार -संक्षेप
1 भावों की गंगा
संसार -सागर का संतरण आनन्दमय ढंग से करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म सहारा है इस अध्यात्म को समझने के लिए आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
जीवन माटी का एक खिलौना है लेकिन माटी की परिपाटी यदि हमें प्रेरित करने लगे तो यह सदाचार वेला कल्याणकारी होगी
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
यह जीवन कुशलता पूर्वक जीने के लिए है और कर्म करने के लिए है कर्म करके फल की इच्छा नहीं करनी है
यह भाव जीवन -भक्ति के साथ संयुत हो जाए तो हम दीपक की भांति जलते रहते हैं
और फिर मृत्यु में हम लोग शोक नहीं करते
इन सब सूत्रवाक्यों पर विचार करने की आवश्यकता है
विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥
जो तत् को इस रूप में जान लेता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों ही है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरत्व का आस्वादन करता है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्दु शेखर जी का नाम क्यों लिया भैया अरविन्द गांव कब पहुंच रहे हैं आदि जानने के लिए सुनें