3.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 3 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *796 वां*

 संयम श्रद्धा स्वाभिमान के साथ सतत संकल्प भजो, 

लोभ लाभ दीनता कृपणता कायरता हर हाल तजो। 

उठो उठाओ जो उठना चाहें उन सबका हाथ गहो, 

और बन चुके जो जड़ पत्थर उनसे हरदम दूर रहो।।


प्रस्तुत है सत्यधन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 3 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *796 वां* सार -संक्षेप


 1 =अत्यन्त सच्चा 


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आचार्य जी की इन वेलाओं से सात्विक, तात्विक, कर्मशीलता वाले, अध्यात्म में शौर्य और पराक्रम की अनिवार्यता व्यक्त करने वाले  भाव प्राप्त कर हम अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करने में सफल हो रहे हैं यह परमात्मा की कृपा है


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


स्रष्टा ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है

 यहां संबन्ध  विच्छेद ऊंच नीच शुभ अशुभ सफलता असफलता जय पराजय सुख दुःख का मिला जुला रूप दिखता है 

 लेकिन सन्त रूपी हंस दोष रूपी जल का परित्याग कर गुण रूपी दुग्ध को ही ग्रहण करते हैं

आइये इसी दुग्ध को प्राप्त करने के लिए,  अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए,अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों को पाने के लिए, आत्मबोध की अनुभूति के लिए, भ्रम और भय के निवारणार्थ,कर्मानुरागी चैतन्य की प्राप्ति हेतु  और

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आधार लेकर देश और समाज के लिए कुछ न कुछ करने की प्रेरणा प्राप्त करने के लिए 

हम प्रवेश कर जाएं आज की वेला में



इस संसार में हम लोग मनुष्य के रूप में निवास कर रहे हैं और मनुष्यों की वृद्धि से मनुष्य चिन्तित हो रहा है और वह उपाय खोज रहा है

मनुष्य अनेक प्रपंचों में फंसा रहकर अपना महत्त्वपूर्ण जीवन व्यतीत कर देता है

भारत की संस्कृति अद्भुत है 

मनुष्य ने ज्ञान की उपासना की इसकी प्राप्ति के लिए वेदों का हमें आश्रय मिला


वेद अमरत्व के उपासक ग्रंथ हैं ब्राह्मण कर्मकांड हेतु और आरण्यक उपासना हेतु हैं उपनिषद् उपासना और ज्ञान का भंडार हैं इनमें ज्ञान और कर्म का सामञ्जस्य है इन्हें वेदान्त भी कहते हैं ये हजारों की संख्या में हैं उपनिषद् के आधार पर गीता और गीता के आधार पर मानस है 

दाराशिकोह को उपनिषद् बहुत अच्छे लगे तो उसने इनका फारसी में अनुवाद कर दिया

उस अनुवाद का एक फ्रेंच लेखक ने लैटिन में अनुवाद कर दिया उसे एक जर्मन दार्शनिक ने देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उसे इसमें बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य दिखे  उसे लगा कि इसकी बातें जीवन के लिए तो उपयोगी हैं ही मृत्यु के समय में भी इनसे सहारा मिलेगा

हमें भी उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए इनसे मानसिक कमजोरी दूर होगी

जब हमें इनमें सब कुछ मिल जायेगा तो फिर हमें क्या चाहिए 

यही मोक्ष है आत्मानन्द है

नई जनरेशन को भी समझाएं

 उसे दिशा देने की आवश्यकता है उसमें आत्मबोध जाग्रत हो जाए तो पूरे विश्व का कल्याण होगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रदीप भैया नीरज भैया अरविन्द भैया विभास का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें