प्रस्तुत है आशंसु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
824 वां सार -संक्षेप
1 आशावान्
हमारा शरीर से बहुत मोह होता है शरीर संसार तत्त्व को समझने का माध्यम होता है
यही शरीर संसार के भोगों को भोगने का भी माध्यम है
शरीर को जिस तरह संपोषित किया जाता है वह उसी तरह का प्रभाव डालता है सन्ध्योपासन में हम अपने शरीर अपने संसार की शुद्धि की प्रार्थना करते हैं
आचार्य जी का उद्देश्य रहता है कि हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की ओर से विमुख न हों इसलिए वे हमें अध्यात्मोन्मुख कर देते हैं
आचार्य जी चाहते हैं हम शरीर के साथ मन बुद्धि को भी संयमित करें
सूर्योदय से पहले अवश्य जागें खानपान सही रखें संगति सही रखें और संसार में संसारी भाव रखते हुए शौर्य पराक्रम सेवा भाव के साथ सन्नद्ध रहें
राम कथा में हमें शौर्य पराक्रम सेवा समर्पण त्याग आदि बहुत कुछ दिखता है इसलिए यह कथा बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥
राम कथा सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं जीवनमुक्त भी भगवान के गुण निरंतर सुनते रहते हैं
तुलसीदास जी ने अध्यात्म से प्रारम्भ कर अध्यात्म से ही समापन कर दिया और बीच में कथा लिख दी जब कि महर्षि वाल्मीकि जी ने मां सीता का धरती में समाने वाला प्रसंग उठाया है तुलसीदास जी ने यह प्रसंग नहीं लिया
रामानन्द सागर कृत रामायण बहुत चर्चित रहा है इसका पहला एपिसोड 25 जनवरी, 1987 को प्रसारित हुआ था।
आचार्य जी ने लगभग २४६ पंक्तियों की एक कविता लिखी थी
भारत महान भारत महान
इसमें भी वनदेवी अर्थात् मां सीता का धरती में समाये जाने (रामराज्य में आदिशक्ति के निर्वासन का महापाप )का उल्लेख है
आचार्य जी की इस कविता के भावों में डूबने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन