प्रस्तुत है विमार्गप्रस्थित -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
825 वां सार -संक्षेप
1 विमार्गप्रस्थित =असदाचारी
प्रस्तुत है विमार्गप्रस्थित -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
825 वां सार -संक्षेप
1 विमार्गप्रस्थित =असदाचारी
मनुष्य का शरीर अद्भुत है
हमारा शरीर से बहुत मोह होता है यही शरीर संसार तत्त्व को समझने का माध्यम होता है और संसार के भोगों को भोगने का भी माध्यम है
इसे जिस तरह संपोषित किया जाता है वह उसी तरह का प्रभाव डालता है सन्ध्योपासन में हम अपने शरीर अपने संसार की शुद्धि की प्रार्थना करते हैं
मनुष्य के ही शरीर में श्रुति स्मृति चिन्तन मनन विचार और सहज वैखरी की अभिव्यक्ति आदि बहुत कुछ है इसलिए मनुष्य जीवन अद्भुत हो जाता है
आचार्य जी का उद्देश्य रहता है कि हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की ओर से विमुख न हों हमारे अन्दर आत्मग्लानि न आये
आचार्य जी चाहते हैं हम शरीर के साथ मन बुद्धि को भी संयमित करें
सूर्योदय से पहले अवश्य जागें खानपान सही रखें संसार में संसारी भाव रखते हुए शौर्य पराक्रम सेवा भाव के साथ सन्नद्ध रहे
हमारे यहां गुरु शिष्य का एक व्यवस्थित स्वरूप प्रस्तुत किया गया है
को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा ।
शिष्यस्तु को यो गुरुभक्त एव ॥
भक्ति वहीं आती है जहां विश्वास होता है विश्वास के लिए मन का स्थिर होना आवश्यक है
इसलिए इन वेलाओं का विशेष महत्त्व है जो हमारे अन्दर विश्वास भक्ति समर्पण आदि गुण विकसित करती हैं मनुष्यत्व की अनुभूति कराती हैं
हनुमान जी, जो कलियुग में हमारे संरक्षक हैं,की कृपा हमारे ऊपर बनी रहे हम इसकी प्रार्थना करते रहें
कितने ही ऋषियों मुनियों पर भगवान् की कृपा रही तुलसीदास जी पर भी उनकी विशेष कृपा रही
अपनी प्रतिभा से उन्होंने शेष सनातन को भी मुग्ध कर दिया था
मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥
काव्य की भाषा उस समय संस्कृत थी जब कि तुलसीदास जी ने अवधी बोली में मानस की रचना की
लेकिन यही मानस सबको भा गई
दूसरे का काम अच्छा लगे इसके उदाहरण कम देखने को मिलते हैं हर जगह मैं व्याप्त रहता है
भक्ति में यह मैं विलीन हो जाता है
जैसे तुलसीदास जी के लिए
जाना राम प्रभाव तब पुलक प्रफ़ुल्लित गात।
जोरि पानि बोले बचन हृदय न प्रेमु समात॥
इसके अतिरिक्त भैया विनय जी का नाम किस प्रसंग में आया तुलसीदास जी किसके मानस पुत्र थे आदि जानने के लिए सुनें