6.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *799 वां*

 प्रस्तुत है चाट -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 6 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *799 वां* सार -संक्षेप


 1 चाट =ठग 


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हमारा सनातन धर्म अर्थात् आर्यत्व अद्भुत है इस पर जो भी व्यक्ति विश्वास करेगा इसको समृद्ध करेगा वह उतना ही संपूर्ण विश्व के कल्याण में सहायक होगा


इन वेलाओं के माध्यम से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं इन वेलाओं का सार यह है कि  हम सदाचारमय विचार तो ग्रहण करें लेकिन यह भ्रम न पाल लें कि  अपने शरीर को कष्ट देते हुए दीन दुनिया से विरक्त होकर चिन्तन मनन ध्यान धारणा में लीन होना सदाचार है 

सदाचार के अर्थ को समझने वाला व्यक्ति वह है 

जो तत् को ऐसे रूप में जानता है कि वह  विद्या और अविद्या दोनों  का संयोजन है, वह अविद्या से मृत्यु पर विजय पाकर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है



विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥


इस संसार की  अविद्या को पूर्णरूपेण जानकर समझकर उपयोग कर,मानव और अन्य जीवों के कल्याण हेतु उसके स्वरूप को उपयोगी बनाते हुए, मैं कौन हूं इसका सतत विचार करते हुए, शरीर जब कर्म योग्य न रहे तो उसे त्यागने में बिना मोहित हुए अपने को परमात्मा में लीन करना ही सदाचार है

सनातन धर्म में इन्हीं सब बातों को बहुत विस्तार से समझाया गया है 

विकारों का प्रभाव तो ऐसा है कि समझदार व्यक्ति भी भ्रमित हो जाते हैं


अर्जुन जैसा समझदार व्यक्ति भी भ्रमित होकर द्यूतक्रीड़ा में

सब कुछ गंवा बैठा  संसार के बल के दम पर घमंड में चूर मोहांध दुर्योधन श्रीकृष्ण भगवान को बांधने तक का आदेश दे देता है

मनुष्य रूप में लीला करने वाले भगवान् कृष्ण जब अपना विराट् स्वरूप दिखाते हैं तो अर्जुन को समझ में आता है कि ये तो सामान्य व्यक्ति न होकर भगवान् ही हैं


अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्।


अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्।।11.10।।


दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।


सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।।


उस बहुत से मुखों और आंखों से युक्त,  अनेक अद्भुत दर्शनों वाले, बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त, बहुत से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुए

दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए, दिव्य गन्ध से लिपे हुए, विविध प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त, विश्वतोमुख अर्थात् विराट् स्वरूप परमात्मा को अर्जुन ने देखा



इसी तरह सती के भ्रम को शिव जी ने दूर किया

वह प्रसंग  बहुत अद्भुत है कि भगवान राम सीता जी को खोज रहे हैं और सती भ्रमित हैं

बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥

खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधामपति असुरारी॥


संसार में लिप्तता जब हावी हो जाती है और उससे भ्रमित व्यक्ति जब विश्वास नहीं करता तो अपना स्वरूप दिखाना ही   पड़ता  है



राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु।

सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु॥ 53॥


जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥

सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित भ्राता॥


सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ।


ज्ञान खुलता है तो संसार विलीन हो जाता है भोग में लिप्त लोग अंधकार में रहते हैं शरीर में ही वे अवस्थित रहते हैं ज्ञान के पटल इसी कारण खुल नहीं पाते

कभी हमारे यहां घर घर में ज्ञान की सरिता प्रवाहित होती थी कर्मरत रहना फल की इच्छा न करना परमात्माश्रित रहना सिखाया जाता था हम संतुष्ट रहते थे आनन्दित रहते थे 

लेकिन अब हम सतत असंतुष्ट रहते हैं

हमें इस ओर ध्यान देना होगा

यही सदाचार का तत्त्व है

सिद्धि की कामना न करते हुए साधना में रत रहना अद्भुत है

आत्मस्थ होने का प्रयास करें

जीवन शैली संतुलित करें

 नई पीढ़ी को संस्कारित करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शान्तनु बिहारी जी का नाम क्यों लिया जनप्रतिनिधियों के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें