प्रस्तुत है विद्राण ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 7 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*800 वां* सार -संक्षेप
1 जिसकी बुद्धि जाग्रत हुई हो
06:00, 16.63 MB, 16:57
इन सदाचार वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत रखें शुद्ध रखें हम प्रयास करें कि अपना मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की उपासना करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करें, समाज -हित और राष्ट्र -हित का भाव रखें, परस्पर प्रेम भाव रखें, संगठन का महत्त्व समझें, संसार के सत्य को जानते हुए भी संसार में रहने का सलीका जानें
हम युगभारती के सदस्य इन उद्देश्यों की पूर्ति करते दिख भी रहे हैं क्योंकि ऐसे उदाहरण अब सामने आने लगे हैं
आचार्य जी हमें सावधान कर रहे हैं कि संसार के जीवन को हम कटु न बना लें
इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने साथी सहयोगी पर विश्वास रखें भ्रम भय न रखें
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥
प्रेम आत्मीयता की सुंदर रीति देखते ही बनती है कि जल भी दूध के साथ मिलकर दूध के समान भाव पर बिकता है, लेकिन कपट रूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है अर्थात् दूध फट जाता है और स्वाद जाता रहता है अर्थात् कपट के कारण प्रेम आत्मीयता समाप्त हो जाती है
मां सती का एक प्रसंग है जिसमें तत्त्वज्ञ शिव जी समझा रहे हैं कि राम जी साधारण मनुष्य नहीं हैं
सती संसारी भाव में फंसी हुई हैं शिव जी सर्वज्ञ हैं
बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥
हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥
तब संकर प्रभु पद सिरु नावा। सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा॥
एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥
तब तत्त्वज्ञ शिव जी ने प्रभु राम के चरणों में सिर नवाया प्रभु राम का स्मरण करते ही उनके मन में यह आया कि सती के इस शरीर से मेरी भेंट नहीं हो सकती
और शिव ने अपने मन में यह संकल्प कर लिया
शिव जी चाहते हैं कि सती को इसी संसारी भाव में रहते हुए भी शान्ति मिले वे यह नहीं चाहते कि सती नष्ट हो जाएं
सती भी संकल्प करती हैं
कहि न जाइ कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामहि सुमिर सयानी॥
जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥
तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी॥
ये संकल्प अद्भुत हैं
हम भी यदि बहुत छोटा सा अंश वाला संकल्प करें तो संसार की हमारी रहनी बन जाए
किसी कथा का अध्ययन करें तो उसके मूल में जाने का प्रयास करें
हम आत्मसमीक्षा अवश्य करें जो आत्मशक्ति का स्रोत है
एक ही सत्य को ज्ञानी लोग बहुत तरह से समझाते आ रहे हैं
अपनी दिनचर्या सही रखें
इसके अतिरिक्त भैया अमित जी भैया विनय जी भैया आशीष जोग जी भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें