8.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *801 वां* सार -संक्षेप

 ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ शान्तिः , शान्तिः , शान्तिः



प्रस्तुत है अमोघविक्रम ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *801 वां* सार -संक्षेप


 1 अटूट शक्तिशाली 


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 अद्भुत परिपाटी के अवतंश हम सौभाग्यशाली हैं कि सदाचारमय विचारों का संप्रेषण कर हमारे कल्याण की भावना रखते हुए सुस्पष्ट लक्ष्य के साथ सुव्यवस्थित जीवन जीने वाले अत्यन्त प्रतिष्ठित आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हम अभिभाव्यों को लाभान्वित कर रहे हैं आइये यह लाभ प्राप्त करने के लिए, जिससे हमारा जीवन भी सुस्थिर सुस्पष्ट सुव्यवस्थित और सांसारिक दृष्टि से प्रतिष्ठित हो, जिससे हमारा शारीरिक बौद्धिक मानसिक कल्याण हो, नियमित रूप से इन संप्रेषणों को सुनने का संकल्प करते हुए  भाव का धन प्राप्त करने के लिए देश को बलवान् करने के लिए प्रवेश कर जाएं  साधना के अंग आज की वेला में



ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।


अखिल ब्रह्मांड में जड़-चेतन स्वरूप जो भी जगत् है, यह समस्त ईश्वर से व्याप्त है । उस ईश्वर पर विश्वास रखते हुए त्यागपूर्वक इसका भोग करते रहो, आसक्त मत होओ क्योंकि धन – भोग्य पदार्थ – किसका है, अर्थात् किसी का नहीं है ।


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

यह अद्भुत भाव है 


कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।

जिनमें प्रेमाञ्जन लगा हुआ है भावों से जो भरे हुए हैं

जो द्रोह लोभ ईर्ष्या कुंठा की भावना से दूर हैं

 उन्हें यह विश्वास रहता है कि 

ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है


बहुत अधिक भोग में लिप्तता भी ठीक नहीं है हमारे सद्गुण भगवान् हैं और दुर्गुण शैतान हैं हमने इन भगवानों और शैतानों का मिला जुला शरीर धारण किया है सत् आचरण के अभ्यास से हमारे दुर्गुण दूर होते जाएंगे

संयम और स्वाध्याय का अभ्यास आवश्यक है

अभिभावक हनुमान जी जब हमारे साथ हैं तो हमें भय और भ्रम क्यों हो

मनुष्यत्व की अनुभूति कर हमें कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक आ जाता है इसलिए मनुष्यत्व की अनुभूति का अभ्यास प्रारम्भ कर दें मनुष्यत्व की अनुभूति ही शौर्य पराक्रम का भी अनुभव करा देती है और यह अनुभव भी कि हम परमात्मा के अंश हैं और जब परमात्मा को किसी से भय नहीं तो हमें किसी से भय क्यों होगा

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

का भाव सदैव रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष भैया दुर्गेश का नाम क्यों लिया

इजरायल हमास युद्ध की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें