प्रस्तुत है उदारतत्त्व ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा /द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*838 वां* सार -संक्षेप1 विशालहृदय
हमारी संस्कृति में पूरा समय पर्वमय है पर्व हमें उत्साहित करते हैं आज अन्नकूट पर्व है
इन सदाचार वेलाओं के श्रवण का उद्देश्य है कि हम अनुभव करें कि हम अपनी आत्म -ध्वनि ही सुन रहे हैं
आत्म की अनुभूति अध्यात्म का द्वार है
अध्यात्मोन्मुखता संतुष्ट रहना सिखाती है अब समय है कि हम अपने व्यवहार में भी परिवर्तन करें अच्छा व्यवहार सभी को भाता है
प्रातःकाल ऊर्जा के स्रोत इन बहुमूल्य क्षणों में हमें यदि आत्मानुभूति का अभ्यास हो जाए तो बिना बोझ के पूरा दिन पार हो जाएगा समस्याओं का समाधान मिल जाएगा
न गुणान् गुणिनो हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि । नान्यदोषेषु रमते सानसूया प्रकीर्तिता ॥
जो गुणी व्यक्तियों के गुणों का खण्डन नहीं करता है ,बहुत कम गुण रखने वालों की भी प्रशंसा करता है,दूसरे व्यक्तियों के दोषों को देखकर उनकी हंसी नहीं उड़ाता ऐसा भाव 'अनसूया' कहलाता है
इसी महत्त्वपूर्ण अनसूया वृत्ति से हम अपनी संस्कृति के तत्त्वों को समझने की चेष्टा करें
जागरूक कवि तुलसीदास जी, जिनके अन्तर और बाह्य चक्षु दोनों खुले थे,ने मानस की अद्भुत रचना की
जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥
जिसमें केवल ज्ञान नहीं है व्यवहार भी है
तुलसीदास जी के समय राजतन्त्र दम्भ में डूबा हुआ था विधर्मी सफल हो रहे थे
उसका संकेत उन्होंने किया
जिस तरह शंभर तक को ललकारने वाले परमप्रतापी दशरथ चित्रकूट में दैत्यों के अत्याचारों की अनदेखी कर रहे थे ऋषि विश्वामित्र पर ध्यान ही नहीं दे रहे थे क्योंकि वो उनके क्षेत्र से संबन्धित नहीं थे तब भगवान् राम संगठन करते हैं दैत्यों का संहार करते हैं...
इसी तरह शैवों वैष्णवों के संघर्ष चिन्ताजनक थे
ऐसे उत्पातों वाले काल में
तुलसी जो स्वयं रामभक्त हैं कहते हैं
कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥3॥
जिन शिव और पार्वती ने कलियुग को देखकर,संसार के हित हेतु , शाबर मन्त्र समूह की रचना की, जिन मंत्रों के अक्षर अद्भुत हैं, जिनका न कोई ठीक प्रकार से अर्थ होता है और न जप ही होता है, फिर भी भगवान् शिव के प्रताप से उनका प्रभाव प्रत्यक्ष है
शिव जी को तुलसी ने कथा का मूलवाचक बना दिया
भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥5॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥6॥
(मेरी कविता श्री शिवजी की कृपा से सुशोभित होगी)
इस मानस के आंशिक तत्त्व को भी यदि हम आत्मसात् कर लें तो संकट के समय धैर्य की अनुभूति कर लेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुए दीपमिलन कार्यक्रम के विषय में क्या बताया भैया पङ्कज जी भैया मनीष का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें