21.11.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 21 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८४५ वां* सार -संक्षेप

 पहुँच गयी गाड़ी मुकाम पर अभी उतरना है

घर का पता भूल आया हूँ भटक विचरना है

लंबी दूरी राह अजानी
 लगती भर जानी-पहचानी
 अपने जैसों का मेला है
 आपाधापी का रेला है
कहाँ गयी वह कौन आ गया
 धूम छटी फिर मौन छा गया
 कोइ खोजता घूम रहा है
कोई बैठा झूम रहा है
झटका लगा हार कर सोचा यहीं पसरना है ।


प्रस्तुत है निस्तमस्क ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 21 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८४५ वां* सार -संक्षेप

 1 पाप और नैतिक मलिनताओं से मुक्त

जिस अद्भुत भारतभूमि पर हमारा जन्म हुआ है जिन परिस्थितियों में हमारा परिपोषण हुआ है और जो कुछ हमको प्राप्त होता आ रहा है यह परमात्मा की अवर्णनीय महती अनुकम्पा है

हमें इसकी जितने क्षण अनुभूति होती है उतने क्षण आनन्दार्णव में हम मग्न रहते हैं
इन सदाचार वेलाओं के रूप में हमें ऐसे ही क्षण उपलब्ध होते हैं जिनमें हमें आचार्य जी के तात्विक चिन्तन का कुछ अंश प्राप्त होता है विषम परिस्थितियों में भी घिरने के बाद आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन करते हैं यह अद्भुत है

चिन्तन मनन और विचार से संयुक्त मानव के रूप में हमारा जन्म हुआ है यह परमात्मा की ही कृपा है कर्मशील योद्धा के रूप में हम परमात्मा की अद्भुत कृति हैं संसार के सार को खोजना मनुष्य का पौरुष पराक्रम है
इस योद्धा को जब अपने कर्तव्यों का बोध होता है तो वह इस योद्धा स्वरूप को सजाता संवारता है
अणु से विभु तक की यात्रा को आनन्दमयी और मङ्गलमयी बनाने के लिए अपने मन के अनुकूल साथियों

समानी व आकूति: समाना हृदयानि व: |
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति ||

 को साथ लेना हमारा उद्देश्य होना चाहिए


संगच्छध्वं संवदध्वं
सं वो मनांसि जानताम्
देवा भागं यथा पूर्वे
सञ्जानाना उपासते ||
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की भावना हमारे अन्दर बनी रहे इसका प्रयास करें

हनुमान जी हमारे इष्ट हैं डूबते का सहारा हैं

महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥5॥
मैं अत्यन्त वीर हनुमान जी की विनती करता हूँ जिनके यश की गाथा स्वयं भगवान रामजी के श्रीमुख से निकली है

प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥

पवनपुत्र हनुमान जी दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्नि के समान हैं, ज्ञान की घनमूर्ति हैं
उनके हृदय में बाण धारण किए प्रभु श्री राम निवास करते हैं
प्रभु राम ही कहते हैं

निसिचर हीन करउँ महि

हमें प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए परमात्मा पर विश्वास रखना चाहिए इससे हम निराश नहीं होते हमें उत्साह मिलता है
इसके अतिरिक्त
आचार्य जी ने आनन्द की लहरें पुस्तक की चर्चा क्यों की
आचार्य जी ने श्रद्धेय ठाकुर साहब का कौन सा प्रसंग बताया

भैया डा अमित गुप्त जी भैया डा अजय कटियार जी भैया डा मनीष वर्मा जी भैया डा उमेश्वर जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सु