जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं॥
जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अबिनासी॥2॥प्रस्तुत है निश्छिद्र ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 22 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८४६ वां* सार -संक्षेप
1 दोषों से मुक्त
समय की गति अद्भुत है हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि हम समय से संघर्ष नहीं सहयोग प्राप्त करें
हम समय का सदुपयोग करने के लिए किस प्रकार के कर्म करें इसके लिए अवश्य विचार करें
गीता में
किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।4.17।।
यहां कर्म अकर्म विकर्म को सुस्पष्ट किया गया है
कर्म की गति बहुत गहन है
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः।।4.20।।
जो व्यक्ति कर्म और फल की आसक्ति को त्याग आश्रय से रहित और सदैव तृप्त है, वह कर्मों में अच्छी तरह लगने पर भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता।
कवित्व अवर्णनीय है कवि द्रष्टा होता है आचार्य जी की ऐसी अनगिनत कविताएं हैं जिनमें अद्भुत दार्शनिकता परिलक्षित होती है
जब तक गोधन धन रहा, कृषि उत्तमतम कर्म ।
भारत में तब तक रहा, नीति न्याय सद्धर्म। ।
गोपालक ओछा हुआ, सेठ हुआ सिरमौर।
शुरू हो गया देश में, नौकरपन का दौर। ।
गाय गरीबी को हरे, करे जगत खुशहाल।
तन-मन को पावन करे, घर को मालामाल। ।
भारतमाता की सुता का गोमाता नाम।
जो बूझा इस तत्व को, ज्ञानी वही सुनाम। ।
आचार्य जी की ही पुस्तक अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं से एक कविता है जिसमें
दर्शन विचार चिन्तन अनुभव व्यवहार आदि बहुत कुछ है
बीत गया दिन शाम हुई आराम करो
फिर से सूरज की किरणों का ध्यान करो
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लगा सूत का ढेर न चादर बुनी गई
तरह तरह की अनगिन बातें सुनी गईं
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जब तक हम इस चिन्ता में हैं कि हमने जो किया उसका परिणाम हम ही देखें तो उलझन में रहेंगे
रात्रि में विश्राम यदि बोझमुक्त है तो प्रातःकालीन दृश्य हमें शक्ति प्रदान करता है
लेखन अवतरित होता है इसकी अनुभूति का हमें अभ्यास करना चाहिए
लेखन एक योग है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द का नाम क्यों लिया भैया मनीष जी भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें