धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥4॥
प्रस्तुत है ज्ञान -मयूखमालिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 25 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
८४९ वां सार -संक्षेप
1 ज्ञान का सूर्य
हम स्मृतियों में जीते हैं हम भावों और विचारों को पूजते हैं हम अणु आत्मा सत्य के अनुसंधान में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं
कौन स्रष्टा है हमें मनुष्य का जीवन क्यों मिला है
यद्यपि शरीर क्षणभंगुर है
क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली।
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द.
सुगन्ध समीर मिली न मिली।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात
यह भारतीय परम्परा है यह भारत है हनुमान जी की प्रेरणा से ये सदाचार वेलाएं इसी भारत के भाव को सुरक्षित रखने के लिए हम लोगों को उपलब्ध हो जाती हैं
जो इन भावों की गहराई की अनुभूति करते हैं देश का गौरव उन्हीं को होता है
विषम परिस्थितियों में भी सात्विक साधना में रत आचार्य जी द्वारा नित्य कर्तव्य पालन का जो उदाहरण हम देख रहे हैं वह अद्भुत है
सदाचारमय विचारों की उद्भूति अभिव्यक्ति की अनुभूति हमारे लिए लाभकारी है
ईश्वर सर्वशक्तिमान् है
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥
उस सनातन पुरुष के एक हजार शीर्ष हैं, एक हजार नेत्र हैं, एक हजार चरण हैं
वह सारे ब्रह्माण्ड को सभी दिशाओं से आवृत करता हुआ उससे दस उंगली ऊपर स्थित है।
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।
हे विश्व के ईश्वर!
मैं आपको अनेक बाहु, उदर, मुख और नेत्रों से युक्त सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ। हे विश्वरूप! मैं आपके न तो अन्त को देखता हूँ न मध्य को न आदि को।।
और मनुष्य
बड़ा कमज़ोर है आदमी, अभी लाखों हैं इसमें कमी पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा तेरी किरपा से धरती थमी
लेकिन मनुष्यत्व यही है कि मनुष्य समस्याओं के आने पर कमजोर न हो विषम परिस्थितियों का बहादुरी से सामना करे
और लोगों को भी इस तरह की प्रेरणा दे
छोटों और बड़ों दोनों का सहारा बने
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गरुड़ पुराण आदि की चर्चा की