प्रस्तुत है अभिनम्र ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 26 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८५० वां* सार -संक्षेप1 विनीत
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा॥
राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम॥155॥
जन्म -मृत्यु की प्रक्रिया संसार में लगातार चल रही है इसमें कोई आश्चर्य नहीं संसार संबन्धों का विस्तार है
जीवात्मा के प्रवेश के साथ ही सांसारिक संबंधों का प्रारम्भ हो जाता है
मृत्यु के बाद भी संबंधों का अन्त नहीं होता लेकिन नश्वर देह के साथ नश्वर शरीर के संबंध अवश्य समाप्त हो जाते हैं
यह संसार का सार है किन्तु समझ से परे लगता है
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हो चुकी है उसका जन्म निश्चित है
इसलिए जो अटल अपरिहार्य है उसके विषय को लेकर तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए
अपनी आर्ष परम्परा अद्भुत है
जैसे
बौधायन जिन्होनें दो सौ से अधिक धर्म ग्रंथों की रचना की थी। उन्होंने गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए।
उनके श्रौतसूत्र, कर्मान्तसूत्र, द्वैधसूत्र,गृह्यसूत्र,धर्मसूत्र,
शुल्बसूत्र बहुत प्रसिद्ध हैं
गृह्यसूत्र के अन्तर्गत
पितृमेधसूत्र (3.1.4) के अनुसार
'जातसंस्कारेणेमं लोकमभिजयति मृत संस्कारेणामं लोकम्।'
जातकर्म आदि संस्कारों से मनुष्य इस लोक को जीत लेता है और मृतसंस्कार से परलोक को
यह अन्त्येष्टि संस्कार अनिवार्य संस्कार है
रोगी को मृत्यु से बचाने हेतु भरसक प्रयास करने पर भी समय असमय उसकी मृत्यु होती ही है। इस स्थिति को स्वीकारते हुए बौधायन (पितृमेध सूत्र, 33) ने कहा है :
जातस्य वै मनुष्यस्य ध्रुवं मरणमिति विजानीयात्।
तस्माज्जाते न प्रह्यष्येन्मृते च न विषीदेत्।
अकस्मादागतं भूतमकस्मादेव गच्छति।
तस्माज्जातं मृतञ्चैव सम्पश्यन्ति सुचेतसः।
पैदा हुए मनुष्य का मरण अटल है, ऐसा जान लेना चाहिए। इसलिए किसी के जन्म लेने पर न तो प्रसन्नता से फूल के कुप्पा हो जाना चाहिए और न किसी के मरने पर अत्यन्त विषादग्रस्त होना चाहिए । यह जीवधारी अचानक कहीं से आता है और अचानक कहीं चला जाता है। इसलिए बुद्धिमान् व्यक्ति को जन्म और मरण को एक समान देखना चाहिए।
आचार्य जी असार, सार,विचार के साथ सामञ्जस्यपूर्ण आचार व्यवहार को संप्रेषित करते हैं ताकि उनका श्रवण कर हम विषम परिस्थितियों में धैर्य धारण कर सकें संसार में रहने की शक्ति बुद्धि विचार प्राप्त कर सकें और आगे बढ़ सकें
हमारे यहां के कथानक बहुत तत्त्वपूर्ण हैं जैसे शिव जी की सती की मृत्यु पर विचित्र दशा हो गई फिर विष्णु जी ने उनकी सहायता की
जप ध्यान धारणा से शान्ति मिलती है आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि स्मृतियां हमें कैसे प्रभावित करती हैं
द्रष्टा किन्हें कहते हैं