चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम॥75॥चिदानन्द, सुख के धाम, षड्विकारों से रहित शिव सम्पूर्ण लोकों को आनंद देने वाले भगवान राम को हृदय में धारण कर पृथ्वी पर विचरने लगे॥75॥
प्रस्तुत है आनृशंस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 28 नवम्बर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८५२ वां* सार -संक्षेप
1 दयालु
इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचार हम सबके लिए अत्यन्त उपयोगी ऊर्जाप्रद और ग्राह्य हैं आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं
ये विचार संसार में रहने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं
हमारा कर्तव्य है कि इन विचारों का प्रसार भी हम करें
आचार्य जी ने लोहिया जी द्वारा लिखित *राम कृष्ण और शिव* की चर्चा की
राम,कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न है । राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में दृष्टिगोचर होती है। कृष्ण की पूर्णता उन्मुक्त या सम्पूर्ण व्यक्तित्व में परिलक्षित होती है तो शिव की पूर्णता असीमित व्यक्तित्व में है किन्तु इनमें से हर एक पूर्ण है ।
राम कृष्ण और शिव हमारी संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं
महात्मा तुलसी द्वारा वर्णित राम विष्णु के अवतार न होकर परब्रह्म परमेश्वर के अंश हैं
असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥ 121॥
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दिखाया कि मर्यादाएं कहां कहां बांधनी चाहिए
और संसार कैसा होता है
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ 57(ख)॥
प्रीति की सुंदर रीति देखिए कि जल भी दूध के साथ मिल जाने पर दूध के समान भाव बिकता है किन्तु खटाई पड़ते ही दूध फट जाता है और स्वाद जाता रहता है
इसी तरह कपट के कारण प्रेम चला जाता है
लीला पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण ने परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार किया
शिव तो शिव हैं कल्याण भी करते हैं विध्वंस भी करते हैं बहुत भोले भी हैं
भस्मासुर ने किसी के भी सिर पर हाथ रखने के लिए उसे जलाने की शक्ति मांगी शिव ने उसे यह वरदान दे दिया
वह संपूर्ण संसार के लिए एक बुरा स्वप्न बन गया तब विष्णु ने आकर्षक नर्तकी का रूप धारण किया और मुक्तान्त्य नृत्य के दौरान भस्मासुर को अपने ही सिर पर हाथ रखने के लिए बाध्य होना पड़ा जिस क्षण उसका हाथ उसके सिर पर लगा, वह जलकर राख हो गया।
शिव के उपदेश मननशील चिन्तनशील व्यक्ति ही ग्रहण कर सकता है
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दु:ख दुखित सुजाना॥1॥
शिव जी कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश देते तो कहीं राम जी के गुणों का बखान करते थे। यद्यपि सुजान शिव जी निष्काम हैं, फिर भी वे अपने भक्त सती के वियोग के दुःख से दुःखी हैं
दुःख में ज्ञान पल्लवित होता है तो दुःख शमित होता है जब कि मोह से दुःख में वृद्धि होती है
शिव राम को आदर्श मानते हैं तो राम शिव को आदर्श मानते हैं
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥
तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी॥2॥
माता, पिता, गुरु और स्वामी की बात को बिना ही विचारे शुभ मानना चाहिए
यही आजकल नहीं हो रहा
भावी पीढ़ी को संस्कारित करने के लिए स्वयं संस्कारित हों शिक्षा में सुधार के आचार्य जी ने उपाय बताए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया यज्ञदत्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें