*८५३ वां* सार -संक्षेप
1 ज्ञान का सूर्य
कल एक अत्यन्त आनन्दित करने वाला समाचार मिला कि उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में फंसे ४१मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया
कभी हम आनन्दित होते हैं कभी दुःखी
अद्भुत है संसार
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
विधाता ने तो इस जड़-चेतन संसार को गुणों दोषों से युक्त रचा है, लेकिन संत रूपी हंस दोष रूपी जल का परित्याग कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं
इस संसार में हम सार को ग्रहण करने और असार को छोड़ने का प्रयास करें
इन सदाचार वेलाओं के सदाचारमय विचार संसार में रहने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए अत्यन्त उपयोगी और ग्राह्य हैं हम अपना शिक्षकत्व भी जाग्रत रखें और नई पीढ़ी को संस्कारित करें
वेद अपौरुषेय है अर्थात् सामान्य पुरुष की क्षमता से परे है लेकिन असामान्य पुरुषत्व परमात्मा के साथ सहयोग करता है
मैंने करवट ली तो मानो
हिल उठे क्षितिज के ओर छोर
मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व
निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर
मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है
मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है
मैं हँसा और पी गया गरल
मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ...
जब व्यक्ति इस प्रकार की स्थितियों में प्रवेश करता है और जब समय के हिसाब से इसे स्थायित्व मिलता है तो ज्ञान की परतें खुलने लगती हैं
संसार का कारण सुस्पष्ट होने लगता है इसी कारण ऋषि कहता है
लोकवत्तु लीलाकैवल्यम् ॥३३॥
लोकवत्तु लीलाकैवल्यम् । तुशद्बेनाक्षेपं परिहरति ।
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
वेद तीन गुणों के कार्य को ही वर्णित करते हैं
हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ,निर्द्वन्द्व हो जाओ और निरन्तर नित्य परमात्मा में स्थित हो जाओ
योगक्षेम की भी चाह मत रखो आत्मवान् बनने का संकल्प करो
आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि शिक्षक को विद्यावान क्यों होना चाहिए और इसके लिए संस्कार क्यों आवश्यक हैं
गुकारश्चान्धकारो हि रुकारस्तेज उच्यते | अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः |
यदि शिक्षक में गुरुत्व प्रवेश कर जाए तो यह भगवान की महती कृपा है
हमारी संस्कृति सूक्ष्म अंश में सुरक्षित है इस ओर ध्यान दें हम भ्रमित हैं जब कि हमारी संस्कृति में बहुत कुछ है
उचित खानपान उचित आचरण व्यवहार पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है
ये सब शिक्षक ही बता सकता है लेकिन आज का शिक्षक ये सब बताता नहीं इसलिए सबसे पहले तो शिक्षक बनाने का काम होना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया पवन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें