10.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 10 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८६४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -अम्बुराज ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 10 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

  *८६४ वां* सार -संक्षेप

 1 ज्ञान का समुद्र


कल आचार्य जी ने बताया था कि भोगवादी विचारों से ग्रस्त विकृत मानसिकता वाले लोगों,जिनके लिए जिस थाली में खाएं उसी में छेद करें लोकोक्ति सटीक बैठती है , के शमन दमन के लिए हम सतत प्रयास करते रहें
आइये अब आज की वेला में प्रवेश करें

हम संसार के प्रवाह में ही बह न जाएं संसार के तत्व के साथ भी हमारा जुड़ाव रहे
हम अपने आत्मतत्व के दर्शन करते रहें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं
हमारी आर्ष परम्परा के वैशिष्ट्य को सामने रखकर आचार्य जी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ है हमें अद्भुत परिवेश मिला है
इसके लिए हमें परमात्मशक्ति के प्रति भी कृतज्ञ रहना चाहिए
हमें मनुष्य का जीवन भी अत्यन्त सौभाग्य से प्राप्त हुआ है

हमारा वास्तविक कथा साहित्य हमें अपने अंदर के दर्शन कराता है हमें भ्रमित होने से बचाता है हमारा मार्गदर्शन करता है समस्याओं का सामना करने की शक्ति देता है

निज संदेह मोह भ्रम हरनी
राम -कथा भी सभी से जुड़ी है

तुलसीदास जी कहते हैं

तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥


(श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़

लेकिन जब गुरु ने बार-बार कथा कही, तो बुद्धि के अनुसार कुछ समझ में आई। अब मेरे द्वारा वही कथा भाषा में रची जाएगी, जिससे मेरे मन को संतुष्टि मिले)

गुरुता यही है हम सब भी गुरु हैं हमें भी प्रेमपूर्वक आनन्दपूर्वक नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करना चाहिए
हम प्रयास करें वह हमसे अधिक प्रतिभाशाली हो जाए
गुरु अपने प्रकाश से अपने शिष्य को इतना ढक दे कि शिष्य उसी प्रकाश में प्रकाशित हो जाए आचार्य जी में यही गुरुता है
रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥ 31॥
इसी रामकथा के द्वारा तुलसी तुलसी हो गए

इस कथा से मोहांधकार मिट जाता है इसी कथा में लक्ष्मण गीता अद्भुतता लिए हुए है
वही लक्ष्मण जो वन जाते समय व्याकुल होते हैं ज्ञान देते हैं

इस अध्यात्म चिन्तन के साथ हम वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः सिद्धान्त न भूलें
देश संकट में है आगे चुनाव भी हैं अपनी भूमिका ध्यान में रखें संगठन का महत्त्व समझें

इसके अतिरिक्त आज आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें