प्रस्तुत है अमोघविक्रम ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 9 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८६३ वां* सार -संक्षेप1 अटूट शक्तिशाली
हम प्रकृति का संरक्षण प्राप्त कर सांसारिक जीवन जी रहे हैं फिर भी मनुष्य प्रकृति के अंग पर्वतों नदियों वृक्षों आदि को भौतिक उपयोगिता में विनाश करने में जुटा है धन से साधन एकत्र करने में मनुष्य की रुचि हो गई है कृत्रिमता अल्पकालिक जीवन की होती है प्रकृति स्वाभाविक जीवन जीती है
प्रकृति को जब कृत्रिम बनाने की चेष्टा की जाती है वह अल्पमृत्यु प्राप्त करती है
इसलिए हमें प्रकृति को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए उसे विद्रूपता से बचाना चाहिए
भारतीय चिन्तन अद्भुत है वह कहता है जियो और जीने दो
वेदों स्मृतियों पौराणिक ग्रंथों में पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल, आकाश आदि के प्रति असीम श्रद्धा प्रकट की गई है
आर्ष परम्परा के निर्देशों के अनुसार जीवन जीने पर पर्यावरण के असन्तुलन की समस्या ही उत्पन्न नहीं हो सकती।
कभी हम भ्रमित हो गए थे लेकिन अब समय है हम अखंड भारत के पुजारी अपनी आर्ष परम्परा को जानें सद्ग्रंथों में रुचि जगाएं
राष्ट्र -चिन्तन में रत हों
भोगवादी विचारों से ग्रस्त विकृत मानसिकता वाले लोगों के शमन दमन के लिए प्रयास करें जगह जगह संगठन स्थापित करें
संगठन का उद्देश्य लाभ लोभ न हो
प्रेम आत्मीयता के साथ लक्ष्य सामने रहे हम लक्ष्य को ओझल न होने दें
लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल ।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रयागराज की चर्चा क्यों की भैया डा नरेन्द्र जी बैच १९८१ और भैया आशुतोष गुप्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें