11.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 11 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८६५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -अम्बुभृत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 11 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

  *८६५ वां* सार -संक्षेप

 1 ज्ञान का समुद्र
हम आनन्द में रहने का प्रयास करते हैं
आनन्द की अवस्था हमें तब प्राप्त होगी जब हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा मन संयमित रहेगा बुद्धि प्रखर रहेगी और इसके लिए इन सदाचार वेलाओं के साथ सद्ग्रंथों संत पुरुषों अच्छे परिवेश की सद्संगति हमें आवश्यक है
आइये भौतिक गुमान में ही अपने को न भूलते हुए इसी आनन्द की प्राप्ति के लिए प्रवेश करें आज की वेला में

हमारा दर्शन अद्भुत है सनातन धर्म अद्वितीय है
हमने पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब माना क्योंकि हम यह जान पाए कि हम सभी उस एक परमपिता परमेश्वर के अंश हैं
मनुष्य के रूप में हमें जन्म मिला है यह हमारा सौभाग्य है हमारा जीवन कर्ममय है
हमारा उद्देश्य है मोक्ष
हम प्रकृति को भी श्रद्धाभाव से देखते हैं त्याग की संस्कृति में विश्वास करते हैं
संकट में पूरा विश्व हमें ही ताकता है
हम परमार्थ के लिए जीते हैं
इन सब बातों को आचार्य जी ने सन् २०१० में लिखी निम्नांकित कविता में बखूबी व्यक्त किया है

दुनिया के प्राण बचाना है तो भारत का दर्शन मानो
है परमपिता सबका समान अपना जैसा सबको जानो
सुख शान्ति सभी की इच्छा है सब चाह रहे भोजन पानी
मर्यादा में सब बंधे रहें न कोई न कर सके मनमानी

मानव ही क्या जड़ चेतन भी उस एक तत्व का अंशरूप
जो परहित जीवन जिए वही मानव हो जाता देवरूप
भारत भा -रत इसलिए है कि उसने प्रकाश पहचाना था
भारत ने धरती के अणु अणु को ब्रह्मरूप ही माना था

बस इसीलिए उसने सारी वसुधा को ये कुटुम्ब कहा
अपने समान सुख दुःख सबका ऐसा उसका विश्वास रहा
सब सुखी निरोगी सुन्दर हों परमेश्वर से ये विनती की
कर्मों पर आधारित जीवन के पाप पुण्य की गिनती की

दुनिया में भारत विश्वगुरु बस इसीलिए कहलाता था
 पूरे जगजीवन से उसका अपनों के जैसा नाता था
भारत ने श्रद्धाभाव सहित विधिवत् पूजा पूरा निसर्ग
बस इसीलिए उसको धरती पर ही जीते जी मिला स्वर्ग

भौतिक गुमान में भूल भटक संसार प्रकृति से खूब लड़ा
अब छिन्न भिन्न हो भय व्याकुल मझधार बीच रो रहा पड़ा
भयभीत विश्व भारत को माने फिर फिर से जाने
कर अविश्वास जिस पर रोया उस पराशक्ति को पहचाने


भारत ही देगा उसे अभय भारत ही उसे बचाएगा
भारत का जीवनदर्शन ही दुनिया को पुनः सजाएगा
भारत ही उसको अहंकार का सही अर्थ समझाएगा
भारत ही उसको शांति सत्य का जीवनपंथ सुझाएगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनोज अवस्थी जी के श्रीमद्भग्वद्गीता से संबन्धित किस प्रसंग का उल्लेख किया भैया विनय अजमानी जी द्वारा सूचित किस कार्यक्रम का उल्लेख किया अरिन्दम जी और सारगाछी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें