13.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 13 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८६७ वां* सार -संक्षेप

 प्रभंजन सूचना देकर न आते हैं न जाते हैं,

हुईं हल्की हवाएँ आ धमकते बलबलाते हैं।
जहाँ धरती बसंती वेश में मधुऋतु वरण करती ,
प्रभंजन भी सलीके से मधुर स्वर गुनगुनाते हैं। ।

प्रस्तुत है अयान्वित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 13 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८६७ वां* सार -संक्षेप

 1 सौभाग्यशाली

शिक्षकत्व अपने शिष्यों के सर्वतोमुखी विकास के लिए कैसे प्रयत्नशील और लालायित रहता है इसका विलक्षण और अद्वितीय उदाहरण ये सदाचार संप्रेषण हैं
हम सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए आचार्य जी चाहते हैं कि हम शिक्षार्थी सर्वशक्तिसंपन्न होकर यशस्विता प्राप्त करें संसार के साथ संसार के सार को भी समझने का प्रयास करते चलें
अपनी भावनाओं में वृद्धि करते हुए कल्पनाओं को विस्तार दें सतत जागरूक रहें
अपना कर्म अपना धर्म समझ में आता रहे इसका ध्यान देते रहें इसी में सफलता का राज छिपा है आत्मबोध के साथ आत्मशोध भी करते चलें
अध्यात्म आधारित जीवन को संचालित करने के अभ्यासी बनें ताकि विकट से विकट समस्याएं आएं तो भयभीत न हो पाएं मानस और गीता से अपनी सात्विक शक्ति
(इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि )
 का संवर्धन करें
विह्वल होकर आनन्दित होने से धोखा खा सकते हैं इसलिए इस ओर भी सचेत रहें
इस तरह से मार्गदर्शन करना आचार्य जी का स्वभाव हो गया है
यह स्वभाव विचित्र है यह अपना प्रभाव अवश्य दिखाता है
 गीता में

स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।

कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत्।।18.60।।


हे अर्जुन ! तुम अपने स्वाभाविक कर्मों से बंधे हुए हो मोह के कारण जिस कर्म को तुम करने के इच्छुक नहीं हो वही तुम विवश होकर करोगे
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।



ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में वास करता है और अपनी माया के द्वारा शरीर रूपी यन्त्र पर आरूढ़ होकर सारे प्राणियों, जिनके स्वभाव भिन्न भिन्न हैं, को भ्रमण कराता रहता है।

मनुष्यों में रुचि की भिन्नता
एक रहस्यात्मक पक्ष है चिन्तन मनन निदिध्यासन से इसे समझा जा सकता है
हम राष्ट्र -भक्त संगठन का महत्त्व भी समझें
क्योंकि समाज में इसकी बहुत आवश्यकता है देश इस समय गम्भीर संकट में है हम राष्ट्र -भक्तों के अनुकूल सफलताओं को दुष्ट सहन नहीं कर पा रहे हैं इसलिए उनके कुत्सित प्रयास लगातार चल रहे हैं
 साम्यवादी चिन्तन भी घातक है
इस ओर सचेत रहें
जगह जगह शक्ति -केन्द्र स्थापित करें
जहां जहां संकट दिखें उन्हें सुलझाने का प्रयास करें



हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥

बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर
हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर
ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए
ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥

हम चले थे विश्व भर को प्रेम का संदेश देने
किंतु जिन को बंधु समझा आ गया वह प्राण लेने
शक्ति की हम ने उपेक्षा की इसीका दंड पाया
यह प्रकृति का ही नियम है अब हमे यह जानना है ॥

जग नही सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन
सिर झुकाता है उसे जो कर सके रिपु मान मर्दन
हृदय मे हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर मे प्रबल हो
यह सफलता मन्त्र है करना इसी की साधना है ॥