कण-कण से झाँकती तुम्हें छवि विराट की
अपनी तो आँख एक है
अपनी तो आँख एक है उसकी हज़ार हैं
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
प्रस्तुत है निभृत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 17 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८७१ वां* सार -संक्षेप
1 दृढ़
हमारे गुरु
(भगवान दत्तात्रेय ने तो चौबीस गुरु बनाए। वे कहते थे कि जिस किसी से भी सीखने को मिले, हमें अवश्य ही सीखने का प्रयत्न करना चाहिए )
के रूप में आचार्य जी नित्य यह प्रयास करते हैं कि संसार को संसार की दृष्टि से देखने के साथ साथ हमारी आत्मज्योति भी जाग्रत रहे हमारा सुप्त चैतन्य जाग्रत रहे हम राह नहीं भटकें हम राष्ट्रहित में कार्यव्यवहार करें
भारतवर्ष का परमात्मा पर आश्रित चिन्तन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसमें अतिशयोक्ति नहीं
भक्त इस पर विश्वास करते हैं विचारशील लोग इस पर चिन्तन कर सकते हैं लेकिन यदि उन विचारशील लोगों में यदि बहुत अल्प मात्रा में भी सात्विक ऊर्जा है तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
कोई तो ऐसी सत्ता है जो सब कुछ चला रही है
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
इस संसार में कर्मशील होते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए
अंशी के अंश के लिए यही विधान है, इससे भिन्न नहीं है
इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य कर्म में लिप्त नहीं होता।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ।।२-५१।।
बुद्धियोग युक्त मनीषी जन कर्मजन्य फलों को त्याग जन्मरूप बन्धन से मुक्त हुए निर्दोष पद को पा लेते हैं।
कर्म पर कर्म करते जाएं लेकिन व्याकुलता हमें न घेरे हमें कष्ट न हो इसी का हम प्रयास करते हैं
जितना हम संसार से सुपरिचित होंगे तो उसका सार भी समझ में आयेगा
संसार का आनन्द इसी से प्राप्त होता है
अंश आत्मा अंशी परमात्मा में लीन होकर अपना अस्तित्व समाप्त कर देती है
यदि कोई आत्मा के पृथक् अस्तित्व को खोजना भी चाहे तो उसके लिए यह अत्यन्त असाध्य होगा
हमें अवरोधों का सामना भी करना होता है अवरोधों से हमें घबराना नहीं चाहिए संसार एक नाट्यमंच है सत्ता का देवासुर संग्राम चलता ही रहेगा संसार एक रोचक रंगमंच लगेगा हम इस रंगमंच के द्रष्टा और कर्ता दोनों हैं
जिसे जो काम मिला है उसे वह सही ढंग से करे तो उसे आनन्द मिलेगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी का भैया मनीष कृष्णा जी के पुत्र भैया अभिजय जी का नाम क्यों लिया आज आचार्य जी कहां हैं जानने के लिए सुनें